________________
५, ५, ५९.) पयडिअणुओगद्दारे ओहिणाणखेत्त-कालपरूवणा ( ३०७
भरहम्मि अद्धमासं साहियमासं च जंबुदीवम्मि।
वासं च मणुअलोए वासपधत्तं च रुजगम्मिर ॥६॥ छब्बीसजोयणाहियपंचजोयणसयाणि छक्कला य भरहो त्ति भण्णदि । कुदो ? समुदायेषु प्रवत्ताः शब्दा अवयवेष्वपि वर्तन्त इति न्यायात् । एदस्स घणो एत्थ भरहो त्ति घेत्तव्यो, कार्ये कारणोपचारात् । एत्थ कालो अद्धमासो होदि । जस्स ओहिणाणिस्स ओहिणिबद्धक्खेत्तं घणागारेण दुइदं संतं भरहणमेत्तं होदि सो कालेण अद्धमासं जाणाद त्ति भणिदं होदि । पुत्वं व जोयणलक्खघणो जंबूदीवो णाम । तम्हि कालो मासो सादिरेयो। जं ओहिणिबद्धं खेत्तं घणागारेण द्वइदे जोयणलक्खघणमेत्तखेत्तं होदि तम्हि* कालो सादिरेयमासमेत्तो होदि त्ति णिदं होदि। पणदालीसजोयणलक्खघणो पुव्वं व मणुअलोगो होदि, तम्हि मणुअलोए कालो एगं वस्सं । जम्हि ओहिणिबद्धक्खेत्ते घणागारेण दुइदे पणदालीसजोयणलक्खघणो उप्पज्जदि तत्थ कालो एसवस्समेत्तो होदि त्ति भणिदं होदि । रुजगवरदीवस्स बाहिरदोपासपेरंताणं मज्झिमजोयणाणि रुजगवरं णाम, अवयवेषु प्रवत्ताः शब्दाः समुदायेष्वपि वर्तन्त इति न्यायात् । तस्स घणो वि रुजगवरो णाम, कार्ये कारणोपचारात् । तत्थ कालो वासपुधत्तं होदि । अद्धसयलयंदआगारेण संठिदभरह
जहां घनरूप भरतवर्ष क्षेत्र है वहां काल आधा महिना है। जहां घनरूप जम्बूद्वीप क्षेत्र है वहां काल साधिक एक महिना है। जहां घनरूप मनुष्यलोक क्षेत्र है वहां काल एक वर्ष है। जहां घनरूप रुचकवर द्वीप क्षेत्र है वहां काल वर्षपृथक्त्व है ॥ ६ ॥
भरतक्षेत्र पांच सौ छब्बीस सही छह बटे उन्नीस योजनप्रमाण कहा जाता है, क्योंकि, समुदाय में प्रवृत्त हुए शब्द अवयवों में भी रहते हैं, ऐसा न्याय है । यहां इसका घनरूप भरतक्षेत्र लेना चाहिए, क्योंकि यहां कार्य में कारणका उपचार किया गया है। यहां काल अर्ध मासप्रमाण होता है । जिस अवधिज्ञानीका अवधिनिबद्ध क्षेत्र धनाकाररूपसे स्थापित करनेपर भरत क्षेत्रके घनप्रमाण होता है वह कालकी अपेक्षा अर्ध मासकी बात जानता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। यहां जम्बूद्वीप पदसे पहलेके समान एक लाख योजनके घनप्रमाण जम्बूद्वीप लिया गया है। इतना क्षेत्र होनेपर काल साधिक एक महिना होता है । जो अवधिज्ञानसे सम्बन्ध रखनेवाला क्षेत्र घनाकाररूपसे स्थापित करनेपर एक लाख योजनके घनप्रमाण होता है उसमें काल साधिक एक महीना होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है। पैंतालीस लाख योजनके घनप्रमाण पहलेके समान मनुष्यलोक होता है, उस मनुष्यलोक प्रमाण क्षेत्रके होनेपर काल एक वर्ष प्रमाण होता है । जिस अवधिज्ञानसे सम्बन्ध रखनेवाले क्षेत्रके घनाकाररूपसे स्थापित करनेपर वह पैंतालीस लाख योजन धनप्रमाण होता है वहां काल एक वर्ष मात्र होता है, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । रुचकवर द्वीपके बाह्य दोनों पावों तक मध्यम योजनोंकी रुचकर संज्ञा है, क्योंकि, अवयवोंमें प्रवृत्त हुए शब्द समुदायोंमें भी रहते हैं, ऐसा न्याय है। उसका धन भी रुचकवर कहलाता है, क्योंकि, यहां कार्यमें कारणका उपचार किया गया है । इतना क्षेत्र होनेपर काल वर्षपृथक्त्वप्रमाण होता है।
षट्वं. पु. ९, पृ. २५. * ताप्रतौ — भणदि ' इति पाठः । * प्रतिषु · तम्हा ' इति पाठः ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org