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५, ५, ५०. ) पडिअणुओगद्दारे सुदणाणास्स एय?परूवणा ( २८७ च्छिद्यन्ते जीवादयः पदार्थाः अनया इति सम्यग्दृष्टिः श्रुतिः, सम्यग्दृश्यन्ते श्रद्धीयन्ते अनया जीवदयः पदार्थाः इति सम्यग्दष्टिः, सम्यग्दष्टयविना*भावित्वाद्वा सम्यग्दृष्टिः। सम्माइट्टि त्ति गदं । हेतुः साध्यविनाभावि लिंगं अन्यथानुपपत्त्येकलक्षणोपलक्षितः । स हेतुद्विविधः साधन-दूषण हेतुभेदेन । तत्र स्वपक्षसिद्धये प्रयुक्तः साधनहेतुः। प्रतिपक्षनिर्लोट्टनाय प्रयक्तो दूषणहेतुः । हिनोति गमयति परिच्छिनत्त्यर्थमात्मानं चेति प्रमाणपंचकं वा हेतुः । स उच्यते कथ्यते अनेनेति हेतुवादः श्रुतज्ञानम् । एवं हेतुवादो त्ति गदं। आत्रिकामुत्रिकाफलप्राप्युपायो नयः । स उच्यते कथ्यते अनेनेति नयवादः सिद्धान्तः । णयवादो त्ति गदं । स्वर्गापवर्गमार्गत्वाद्रत्नत्रयं प्रवरः । स उद्यतेक निरूप्यते अनेनेति प्रवरवादः । एवं पवरवादो ति गदं । मग्यते अनेनेति मार्गः पंथाः। स पंचविधः-नरकगतिमार्गः तिर्यग्गतिमार्गः मनुष्यगतिमार्गः देवगतिमार्गः मोक्षगतिमार्गश्चेति । तत्र एकैको मार्गोऽनेकविधः, कृमि-कीटादिभेदभिन्नत्वात् । एते मार्गाः एतेषामाभासाश्च अनेन कथ्यंत इति मार्गवादः सिद्धांतः । मग्गवादो त्ति गदं। श्रुतं द्विविधं- अंगप्रविष्टमंगबाह्यमिति । तदुच्यते कथ्यते
शुद्ध पदका कथन किया। इसके द्वारा जीवादि पदार्थ सम्यक प्रकारसे देखे जाते हैं अर्थात् जाने जाते हैं, इसलिये इसका नाम सम्यग्दृष्टि-श्रुति है; इसके द्वारा जीवादिक पदार्थ सम्यक् प्रकारसे देखे जाते हैं अर्थात् श्रद्धान किये जाते हैं, इसलिये इसका नाम सम्यग्दृष्टि है; अथवा सम्यदृष्टिके साथ श्रुतिका अविनाभाव होनेसे उसका नाम सम्यदृष्टि है। इस प्रकार सम्यग्दृष्टि पदका कथन किय।। जो लिंग अन्यथानुपपत्तिरूप एक लक्षणसे उपलक्षित होकर साध्यका अविनाभावी होता है उसे हेतु कहा जाता है। वह हेतु दो प्रकारका है- साधनहेतु और दूषणहेतु । इनमें स्वपक्षकी सिद्धि के लिये प्रयुक्त हुआ हेतु साधनहेतु और प्रतिपक्षका खण्डन करनेके लिये प्रयुक्त हुआ दूषणहेतु है । अथवा जो अर्थ और आत्माका ‘हिनोति' अर्थात् ज्ञान कराता है उस प्रमाणपंचकको हेतु कहा जाता है। उक्त हेतु जिसके द्वारा 'उच्यते' अर्थात् कहा जाता है वह श्रुतज्ञान हेतुवाद कहलाता है । इस प्रकार हेतुवाद पदका कथन किया । ऐहिक और परलौकिक फलकी प्राप्तिका उपाय नय है। उसका वाद अर्थात् कथन इस सिद्धान्तके द्वारा किया जाता है, इसलिये यह नयवाद कहलाता है। इस प्रकार नयवाद पदका कथन किया।
स्वर्ग और अपवर्गका मार्ग होनेसे रत्नत्रयका नाम प्रवर है। उसका वाद अर्थात् कथन इसके द्वारा किया जाता है, इसलिये इस आगमका नाम प्रवरवाद है । इस प्रकार प्रवरवाद पदका कथन किया। जिसके द्वारा मार्गण किया जाता है वह मार्ग अर्थात् पथ कहलाता है । वह पांच प्रकारका है- नरकगतिमार्ग, तिर्यग्गतिमार्ग, मनुष्यगतिमार्ग, देवगतिमार्ग और मोक्षगतिमार्ग । उनमेंसे एक एक मार्ग कृमि व कीट आदिके भेदसे अनेक प्रकारका है। ये मार्ग और मार्गाभास
सके द्वारा कहे जाते हैं वह सिद्धान्त मार्गवाद कहलाता है। इस प्रकार मार्गवादका कथन किया । श्रुत दो प्रकारका है- अंगप्रविष्ट और अंगबाह्य । इसका कथन जिस वचनकलापके द्वारा
* प्रतिष ' सम्यग्दृष्ट्याविना- ' इति पाठः 1 ४ अ-आप्रत्यो: ' निलोटनाय "ताप्रती निर्लोटनाय'
ति पाठ:1 0 अप्रती ' अत्रिका- 'इति पाठः1 . अ-आप्रत्यो ' उच्यते ' इति पाठः ।
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