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पर्याअणुओगद्दारे सुदणाणस्स एयट्ठपरूवणा
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अहिंसा सत्यास्तेय शील-गुण-नय-वचन द्रव्यादिविकल्पाः भंगाः । ते विधीयन्तेऽनेनेति भंगविधिः श्रुतज्ञानम् । अथवा, भंगो वस्तुविनाशः स्थित्युत्पत्त्यविनाभावी, सोऽनेन विधीयते निरूप्यत इति भंगविधिः श्रुतम् । एवं भंगविधि ति गदं । विधानं विधिः, गानां विधिर्भेदो+विशिष्यते . पृथग्भावेन निरूप्यते अनेनेति भंग विधिविशेषः श्रुतज्ञानम् । एवं भंगविधिविसेसो त्ति गदं ।
द्रव्य गुण पर्यय - विधिनिषेधविषयप्रश्नः पृच्छा, तस्याः क्रमः अक्रमश्च अक्रमप्रायश्चितं च विधीयते अस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम् अथवा पृष्टोऽर्थः पृच्छा, सा विधीयते निरूप्यतेऽस्मिन्निति पृच्छाविधिः श्रुतम् । एवं पुच्छाविधि त्ति गदं । विधानं विधिः पृच्छायाः विधिः पृच्छाविधिः स विशिष्यतेऽनेनेति पृच्छा विधिविशेषः । अर्हदाचार्योपाध्याय-साधवोऽनेन प्रकारेण पृष्टव्याः प्रश्नभंगाश्च इयन्त एवेत्ति यतः सिद्धान्ते निरूप्यन्ते ततस्तस्य पृच्छाविधिविशेष इति संज्ञेत्युक्तं भवति । पुच्छाविधिविसेसो त्ति गदं । तदिति विधिस्तस्य भावस्तत्त्वम् । कथं श्रुतस्य विधिव्यपदेशः !
अहिंसा, सत्य, अस्तेय, शील, गुण, नय, वचन और द्रव्यादिकके भेद भंग कहलाते हैं । उनका जिसके द्वारा विधान किया जाता है वह भंगविधि अर्थात् श्रुतज्ञान है । अथवा, भंगका अर्थ स्थिति और उत्पत्तिका अविनाभावी वस्तुविनाश है । वह जिसके द्वारा विहित अर्थात् निरूपित किया जाता है वह भंगविधि अर्थात् श्रुत है । इस प्रकार भंगविधिका कथन किया ।
विधिका अर्थ विधान है । भगोंकी विधि अर्थात् भेद ' विशेष्यते ' अर्थात् पृथक् रूपसे जिसके द्वारा निरूपित किया जाता है वह भंगविधि विशेष अर्थात् श्रुतज्ञान है। इस प्रकार भंगविधिविशेषका कथन किया ।
द्रव्य, गुण और पर्यायके विधि-निषेधविषयक प्रश्नका नाम पृच्छा है । उसके क्रम और अक्रमका तथा प्रायश्चित्तका जिसमें विधान किया जाता है वह पृच्छाविधि अर्थात् श्रुत है । अथवा पूछा गया अर्थ पृच्छा है, वह जिसमें विहित की जाती है अर्थात् कही जाती है वह पृच्छाविधि श्रुत है । इस प्रकार पृच्छाविधिका कथन किया। विधान करना विधि है । पृच्छाकी विधि पृच्छाविधि है । वह जिसके द्वारा विशेषित की जाती है वह पृच्छाविधिविशेष है । अरिहन्त, आचार्य, उपाध्याय और साधु इस प्रकारसे पूछे जाने योग्य हैं तथा प्रश्नोंके भेद इतने ही हैं; ये सब चूंकि सिद्धान्त में निरूपित किये जाते हैं अतः उसकी पृच्छाविधिविशेष यह संज्ञा हैं, यह उक्त कथनका तात्पर्य है । इस प्रकार पृच्छाविधिविशेषका कथन किया । ' तत् ' इस सर्वनामसे विधिकी विवक्षा है, 'तत्' का भाव तत्त्व है ।
शंका- श्रुतकी विधि संज्ञा कैसे है ?
समाधान - चूंकि वह सब नयोंके विषयके अस्तित्वका विधायक है, इसलिए श्रुतकी विधि संज्ञा उचित ही है ।
प्रतिषु ' विधेर्भेदो' इति पाठः । अ-आ-काप्रतिषु निरूप्यते इति पाठ: 1 इति पाठ । ताप्रती ' विधिर्व्यपदेश:, इति पाठः ।
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अ आ-काप्रतिषु ' विशेष्यंते ' इति पाठ: 1 * प्रतिषु ' अक्रमश्च अक्रमप्रश्नप्रायश्चितं
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