Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 339
________________ ३०२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं ( ५, ५, ५९. आहार-तवियसमयतब्भवत्थस्स जहणिया ओगाहणा होदि । जद्देहि जावद्धा एसा ओगाहणा तद्देही तावद्धा चेव जहणिया ओही खेत्तदो होदि । तद्देही चेवे त्ति अवहारणं कुदोवलब्भदे? णियमणिद्देसादो। समुदायेषु प्रवृत्ताः शब्दा अवयवेष्वपि वर्तन्त इति न्यायात् । सुहमणिगोदजीवअपज्जत्तयस्स* ओगाहणाए एगागासपत्तीए वि ओगाहणसण्णा अस्थि त्ति तद्देही खेत्तदो जहणिया ओहि त्ति किण्ण घेप्पदे ? ण, जहण्णभावेण विसे सिदओगाहणणिद्देसादो। ण च एगोलो जहण्णोगाहणा होदि, समुदाए वक्कपरिसमत्तिमस्सिदूण तत्थतणसव्वागासपदेसाणं गहणादो । पादेक्क वक्कपरिसमत्ती एत्थ ण गहिदा ति कधं णव्वदे? आइरियपरंपरागदविरुद्धव दो। तम्हा जद्देहि जहणिया ओगाहणा तद्देही खेत्तदो जहण्णेहि त्ति सिद्धं । एवं जहण्णोगाहणक्खेत्तं एगागासपदेसोलीए रचेदूण तदंते टुदं जहण्णदव्वं जाणदि ति किण्ण घेप्पदे? ण, जहण्णोगाहणादो असंखेज्जगुणजहण्णोहिखेत्तप्पसंगादो। आहारको ग्रहण करनेवाले और तीसरे समयमें तद्भवस्थ हुए सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी जघन्य अवगाहना होती है । 'जद्देही' अर्थात् जितनी यह अवगाहना होती है । तदेही' उतना ही क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य अवधिज्ञान होता है । शंका- 'उतना ही' ऐसा अवधारण वचन किस प्रमाणसे उपलब्ध होता है ? समाधान- सूत्रमें जो नियम पदका निर्देश किया है, उससे जाना जाता है कि यह सावधारण वचन है, क्योंकि, समुदायोंमे प्रवृत्त हुए शब्द अवयवोंमें भी रहते हैं, ऐसा न्याय है। शंका- सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी अवगाहनाकी एक आकाशपंक्तिकी भी अवगाहना संज्ञा है, इसलिए क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य अवधिज्ञान तत्प्रमाण क्यों नहीं ग्रहण करते? समाधान- नहीं, क्योंकि जघन्य विशेषगसे युक्त अवगाहनाका निर्देश किया है। एक आकाशपंक्ति जघन्य अवगाहना होती है, यह कहना ठीक नहीं है; क्योंकि, समुदाय रूप अर्थमें वाक्यकी परिसमाप्ति इष्ट है । इसलिए सूक्ष्म निगोद लब्ध्यपर्याप्तक जीवकी अवगाहनामें स्थित सब आकाशप्रदेशोंका ग्रहण किया है। शंका- यहांपर अवयवरूप अर्थमें वाक्यकी परिसमाप्ति ग्रहण नहीं की गई है, यह किस प्रमाणसे जानते हो? । समाधान- आचार्यपरम्परासे आये हुए अविरुद्ध उपदेशसे जानते हैं। इसलिए जितनी जघन्य अवगाहना होती है, उतना क्षेत्रकी अपेक्षा जघन्य अवधिज्ञान है: यह सिद्ध होता है। ___ शंका- इस जघन्य अवधिज्ञानके क्षेत्रको एक आकाशप्रदेशपंक्तिरूपसे स्थापित करके उसके भीतर जघन्य द्रव्यको जानता है, ऐसा यहां क्यों नहीं ग्रहण करते? समाधान- नहीं; क्योंकि ऐसा ग्रहण करनेपर जघन्य अवगाहनासे असंख्यातगुणे जघन्य अवधिज्ञानके क्षेत्रका प्रसंग प्राप्त होता है । जो जघन्य अवधिज्ञानसे अवरुद्ध क्षेत्र है, वह *ताप्रती · सुहुमणिगोदअपज्जत रस्स ' इति पाठः। 9 अप्रतौ ' जहण्णोहोदि ' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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