Book Title: Shatkhandagama Pustak 13
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 309
________________ २७२) . छत्रखंडागमे वग्गणा-खंड ( ५, ५, ४८ एगचरिमक्खरं होदि । पुणो एदस्सुवरि एगवखरे वडिदे अक्खरसमाससुदणाणं होदि। एवमेगेगक्खरुत्तरवडिकमेण अक्खरसमाससुदणाणं वडमाणं गच्छदि जाव एगवखरेणूणपदसुदणाणे त्ति । पुणो एवस्सुवरि एगक्खरे वडिदे एग मज्झिमपदसुदणाणं हीदि। पुणो एदस्सुवरि एगक्खरे वडिदे पदसमाससुदणाणं होदि । एबमेगेगक्खरुत्तरवाड्ढिकमेण पदसमाससुदणाणं वड्ढमाणं गच्छदि जाव एगक्खरेणणसंघादसुदणाणे त्ति । पुणो एदस्सुवरि एगवखरे वडिदे संघादसुदणाणं होदि । पुणो एदस्सुवरि एगक्खरे वड्ढिदे संघादसमाससुदणाणं होदि । एवमेगेगक्खरुत्तवडिकमेण संधावसमाससुदणाणं गच्छदि जाव एगक्खरेणणपडिवत्तिसुदणाणे त्ति । पुणो एदस्सुवरि एगक्खरे वड्डिदे पडिवत्तिसुदणाणं होदि । पुणो एदस्सुवरि एगक्खरे वड्ढिदे पडिवत्तिसमाससुदणाणं होदि । एवं पडिवत्तिसमाससुदणाणं होदूण ताव गच्छदि जाव एगक्खरेणूणअणुओगहारसुदणाणं होदि । पुणो एदस्सवरि एगक्खरे वढिदे अणुओगद्दारसमाससदणाणं होदि । एवमेगेगक्खरुत्तरवढि कमेण अणुयोगद्दारसमाससुदणाणं ताव गच्छदि जाव एगक्खरेणूणपाहुडपाहुडे त्ति । पुणो एदस्सवरि एगक्खरे वड्ढिदे पाहुडपाहुडसुदणाण होदि । पुणो एदस्सुवरि एगवखरे वढि दे पाहुडपाहुडसमाससुदणाणं होदि । एवमेगेगक्खरुत्तरवढिकमेण पाहडपाहडसमाससुदणाणं होदूण गच्छदि जाव एक अन्तिम अक्षर होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर अक्षरसमास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षरकी वृद्धि के क्रमसे एक अक्षरसे न्यून पद श्रुतज्ञानके होने तक अक्षरसमास श्रुतज्ञान बढता रहता है ।पुन: इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर एक मध्यमपद श्रुतज्ञान होता है। पुनः इसके ऊपरएक अक्षरकी वृद्धि होनेपर पदसमास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षरकी वृद्धिके क्रमसे एक अक्षरसे न्यून संघात श्रुतज्ञानके प्राप्त होनेतक पदसमास श्रुतज्ञान होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर संघात श्रुतज्ञान होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर संघातसमास श्रुतज्ञान होता है। इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षरकी वृद्धिके क्रमसे एक अक्षरसे न्यून प्रतिपत्ति श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक संघातसमास श्रुतज्ञान बढता रहता है। पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्रतिपत्ति श्रुतज्ञान होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार एक अक्षरके न्यून अनुयोगद्वार श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक प्रतिपत्तिसमास श्रुतज्ञान बढता रहता हैं। पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर अनुयोगद्वार श्रुतज्ञान होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर अनुयोगद्वारसमास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षरकी वृद्धिके क्रमसे एक अक्षरसे न्यून प्राभृतप्राभृत श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक अनुयोगद्वारसमास श्रुतज्ञान बढता रहता हैं । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्राभूतप्राभूत श्रुतज्ञान होता है । पुनः इसके ऊपर एक अक्षरकी वृद्धि होनेपर प्राभृतप्राभृतसमास श्रुतज्ञान होता है । इस प्रकार उत्तरोत्तर एक एक अक्षर वृद्धि के एक अक्षरसे न्यून प्राभूत श्रुतज्ञानके प्राप्त होने तक प्राभूतप्राभूतसमास श्रुतज्ञान बढता रहता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org.

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