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२०२) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
(५, ५, १०. माओ दुवय-चदुप्पय-अपाद पादसंकुलाणं जीवाणं ताओ कटकम्माणि णाम । कुड्डकट्ठसिला-थंभादिसु विविहवण्णविसेसेहि लिहिदपडिमाओ चित्तकम्माणि णाम । विविहवत्थेसु कयपडिमाओ पोत्तकम्माणि णाम । मट्टिय छहादीहि कदपडिमाओ लेप्पकम्माणि णाम । पव्वदेसु सुक्खदजिणादिपडिमाओ लेणकम्माणि णाम । सिलासु पुधभूदासु उक्क*च्छिण्णासु वा कदअरहंतादिपंचलोगपालपडिमाओ सेलकम्माणि गाम । जिणहरादीणं चंदसालादिसु अभेदेण घडिदपडिमाओ गिहकम्माणि णाम । कुड्डेसु अभेदेण घडिदपंचलोगपालपडिमाओ भित्तिकम्माणि णाम । दंतिदंतुक्किण्णजिणिवपडिमाओ दंतकम्माणि णाम । भेंडेसु घडिदपडिमाओ भेंडकम्माणि णाम । एदेहि सुत्तेहि सम्भावटुवणा परूविदा । कधं पयडीए सम्भाव?वणा जुज्जदे ? ण एस दोसो, अरहंत-सिद्धाइरिय-साहवज्झायादीणं वणगार-गयरागादि-सहावेण घडिदपडिमाणं पयडीए सम्भावढवणत्तदंसणादो। ' अक्खो वा राडओ वा' एदेहि वयणेहि असम्भावढवणा परूविदा । जे च अण्णे एवमादिया अमा: अभेदेण ढवणाए बुद्धीए टुवज्जंति सा सव्वा द्रवणपयडी णाम ।
जीवोंकी प्रतिमायें घडी जाती हैं वे काष्ठकर्म हैं । भीत, काष्ठ, शिला और स्तम्भ आदिकोंमें जो नाना प्रकारके रंगविशेषोंके द्वारा प्रतिमायें लिखी जाती हैं वे चित्रकर्म हैं। नाना प्रकारके वस्त्रोंमें जो प्रतिमायें बनाई जाती हैं वे पोतकर्म हैं मिट्टी और चूना आदिके द्वारा जो प्रतिमायें बनाई जाती हैं वे लेप्यकर्म हैं पर्वतोंमें जो अच्छी तरह छीलकर जिन भगवान् आदिकी प्रतिमायें बनाई जाती हैं वे लयनकर्म हैं । अलग रखी हुई शिलाओंमें या उखाड कर तोडी गई शिलाओंमें जो अरहन्त आदि पांच लोकपालोंकी प्रतिमायें बनाई जाती हैं वे शैलकर्म हैं। जिनगह आदिकी चन्द्रशाला आदिकोंमें अभिन्नरूपसे घडी गई प्रतिमायें गहकर्म है । भीतोंम उनसे अभिन्न बनाई गई पांच लोकपालोंकी प्रतिमायें भित्तिकर्म हैं। हाथीके दांतोंमें उकीरी गई जिनेन्द्र भगवानकी प्रतिमायें दन्तकर्म है । भेंड अर्थात् कांसे आदिमें बनाई गई प्रतिमायें भेंडकर्म है । इन सूत्रोंके द्वारा सद्भावस्थापना कही गई है।
शंका- प्रकृति में सद्भावस्थापना कैसे बन सकती है?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि, अरहन्त, सिद्ध, आचार्य, साधु और उपाध्याय आदिकी वर्ण, आकार और वीतराग आदि स्वभावके द्वारा घडी गई प्रतिमाओंकी प्रकृतिमें सद्भावस्थापनापना देखी जाती है।
'अक्खो वा वराडओ' इन वचनोंके द्वारा असद्भावस्थापना कही गई है । इसी प्रकार इनको लेकर और जो दूसरे अमा अर्थात् अभेदसे स्थापना अर्थात् बुद्धि में स्थापित किये जाते हैं वह सब स्थापनाप्रकृति है।
ताप्रतौ ' कुट्टकद ' इति पाठः[ ले अ-आपत्योः उदयपडिमाओ ', काप्रती ' वुदमपडिमाओ '. ताप्रतो'उदम (कद) पडिमाओ' इति पाठः। अ-आ-प्रत्यौ: 'टंक' इति पाठ: 1 ताप्रती अमी' इति पाठ:]
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