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५, ५, ४३. )
पर्या अणुओगद्दारे ईहावरणीयपरूवणा
( २४५
दु 'मदिव्वं सुदं' इदि जाणावणट्ठ सुदणाणावरणपरूवणाए तप्परूवणं कस्सामो । सुदाणावरणीयस्स कम्मस्स केवडियाओ पयडीओ ? । ४३ । किं संखेज्जाओ किमसंखेज्जाओ किमणंताओ त्ति पुच्छा कदा होदि । कि सुदणाणं णाम ? अवग्गहादिधारणापेरंतमदिणाणेण अवगयत्थादो अण्णत्थावगमो सुदणाणं | तं च दुविहं - सद्दलिंगजं असद्दलिंगजं चेदि । धूर्मालगादो जलगावगमो असलंगजी । अवरो सलगजो । क्लिक्खणं लिंगं ? अण्णहाणुववत्तिलक्खणं । पक्षधर्मत्वं सपक्षे सत्वं विपक्षे च असत्त्वमिति एतैस्त्रिभिर्लक्षणैरुपलक्षितं वस्तु किं न लिंगमिति चेत्- न, व्यभिचारात् । तद्यथा - पक्वान्याम्र फलान्येकशाखाप्रभवत्वादुपयुक्तास्रफलवत्, श्यामः त्वत्पुत्रत्वादितरपुत्रवत् सा भूमिः भूमित्वात्, वादि-प्रतिवादिप्रसिद्ध भूभाग
स
समस्थला
समस्थलत्वेन
भेद गिनाये हैं, उत्तरोत्तर वृद्धिगत क्षयोपशमकी अपेक्षा भेद नहीं गिनाये हैं; इसलिए क्षयोपशमकी मुख्यतासे जो भेद सम्भव हों उनका इन्हीं भेदों में अन्तर्भाव कर लेना चाहिए। यहां एक बात और ध्यान देने योग्य है कि यहांपर आभिनिबोधिक ज्ञानके जो मति आदिक पर्याय नाम बनलाये हैं वे अलग अलग ज्ञानविशेषको सूचित नहीं करते हैं। यहां जितने पर्यायवाची नाम दिये गये है वे इसी भावको सूचित करते हैं ।
अब हम मतिज्ञानपूर्वक श्रुतज्ञान होता है, इस बातका ज्ञान करानेके लिये श्रुतज्ञानावरण कर्मकी प्ररूपणा के प्रसंगसे उसकी प्ररूपणा करते हैं
श्रुतज्ञानावरणीय कर्मको कितनी प्रकृतियां हैं ? ।। ४३ ।।
क्या संख्यात है, क्या असंख्यात हैं, या क्या अनन्त हैं इस प्रकार यहां पृच्छा की गई है । शंका- श्रुतज्ञान का है ?
समाधान - अवग्रहसे लेकर धारणा पर्यंत मतिज्ञानके द्वारा जाने गये अर्थके निमित्त से अन्य अर्थका ज्ञान होना श्रुतज्ञान है ।
वह दो प्रकारका है- शब्दलिंगज और अशब्दलिंगज । धूमके निमित्तसे अग्निका ज्ञान होना अशब्दलिंगज श्रुतज्ञान है। दूसरा शब्दलिंगज श्रुतज्ञान है ।
शंका- लिंगका क्या लक्षण है ?
समाधान - लिंगका लक्षण अन्यथानुपपत्ति है ।
शंका - पक्षधर्मत्व, सपक्षमें सत्त्व और विपक्ष में असत्त्व इस प्रकार इन तीन लक्षणोंसे उपलक्षित पदार्थ लिंग क्यों नहीं माना जाता ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, ऐसे पदार्थको लिंग माननेपर व्यभिचार दोष आता है । यथा - आमके फल पक्व हैं, क्योंकि, वे एक शाखासे उत्पन्न हुए हैं, यथा उपयुक्त आमके फल । वह श्याम होगा, क्योंकि, वह तुम्हारा बालक है, यथा तुम्हारे दूसरे बालक । वह भूमि समस्थवाली है, क्योंकि भूमि है, यथा समस्थलरूपसे वादी और प्रतिवादी दोनोंके लिये प्रसिद्ध भूभाग ।
त. सू. १-२०
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