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२२८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खंड
( ५, ५, २८. असण्णिपंचिदियपज्जत्तएसु चत्तारि धणुस्सुवाणि ४०० । चरिदियपज्जत्तएसु बेधणुस्सदाणि २०० । तेइंदियपज्जत्तएसु एवं धणस्सदं १०० । घाणिदियादो उक्कस्सखओवसमं गदादो एत्तियमद्धाणमंतरिय दिददवम्मि जं गंधणाणमुष्पज्जदि सो धाणिदियअत्थोग्गहो। तस्स जमावारयं कम्मं तं घाणिदियअत्थोग्गहावरणीयं णाम । सण्णिचिदियपज्जत्तएसु जिभिदियअत्थोग्गहस्स विसओ उक्कस्सओ खेत्तणिबंधणो णव जोयणाणि ९ । असण्णिचिदियपज्जत्तएसु पंचधणुस्सदाणि बारसुत्तराणि ५१२ । चरिदियपज्जत्तएसु बेधणस्सदाणि छप्पण्णाणि २५६ । तेइंदियपज्जत्तएसु धणुस्सद मट्ठावीसं १२८ । बेइंदियपज्जतएसु चदुसट्टिधणणि ६४ । उक्कस्सखओवसमगजिभिदियादो एत्तियमद्धाणमंतरिय द्विददव्वस्त रसविसयं जणाणमुप्पज्जदि सो जिभिदियअत्थोग्गहो णाम । तस्स जमावारयं कम्मं तं जिभिदियअत्थोग्गहावरणीयं णाम । सण्णिपंचिदियपज्जत्तएसु फासिदियअत्थोग्गहस्स उक्कस्सविसओ णव जोयणाणि ९ । असणिपचिदिएसु चउसटिधणुस्सदाणि ६४०० । चरिदियपज्जत्तएसु बत्तीसधणुस्स. दाणि ३२००। तेइंदियपज्जत्तएसु सोलसधणुस्सदाणि १६०० । बेइंदियपज्जत्तएसु अट्टधणुस्सवाणि ८०० । एइंदियपज्जत्तएसु चत्तारि धणुस्सदाणि ४०० । फासिदियदो एत्तियमद्धाणमंतरिय टिददव्वम्हि जंणाणमुप्पज्जदि फासविसयं तं फासिदियअत्थोग्गहो णाम । तस्स जमावारयं कम्मं तं फासिदियअत्थोग्गहावरणीयं णाम । णोइंदियादो दिट्ठ. सुदाणुभदेसु अत्थेसु णोइंदियादो पुधभूदेसु जं जाणमुप्पज्जदि सो णोइंदियअत्थोअसंज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें वह चार सौ(४००) धनष है। चतुरिंद्रिय पर्याप्तकोंमें दो सो (२००) धनुष है । तीन इंद्रिय पर्याप्तकों में एक सौ (१००) धनुष है। उत्कृष्ट क्षयोपशमको प्राप्त हुई घ्राणेनियसे इतने क्षेत्रका अन्तर देकर स्थित हुए द्रव्यमें जो गन्ध सम्बधी ज्ञान होता है वह घ्राणेद्रियअर्थावग्रह है और इसका जो आवारक कर्म है वह घ्राणेंद्रिय-अर्थावग्रहावरणीय कर्म है ।
संज्ञो पचेद्रिय पर्याप्तकों में जिह वा इंद्रिय संबंधी क्षेत्रनिबंधन अर्थावग्रहका उत्कृष्ट विषय नौ (९) योजन है । असज्ञा पचेद्रिय पर्याप्तकोंमें वह पांच सौ बारह ( ५.२ ) धनुष है । चौइंद्रिय पर्याप्तकोंमें दो सौ छप्पन (२५६) धनुष है। तीन इंद्रिय पर्याप्तकोंमें एक सौ अट्ठाईस (१२८) धनुष है। द्वींद्रिय पर्याप्तकोंमें चौंसठ (६४) धनुष है। उत्कृष्ट क्षयोपशमको प्राप्त हुई जिव्हा इंद्रियसे इतने क्षेत्रका अन्तर देकर स्थित हुए द्रव्य का जो रसविषयक ज्ञान उत्पन्न होता हैं वह
विग्रह है और उसका जो आवारक कर्म है वह जिव्हेदिय-अर्थावग्रहावरणीय कर्म है।
संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें स्पर्शनेन्द्रियअर्थावग्रहका उत्कृष्ट विषय नौ (९) योजन है। असंज्ञी पचेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें छह हजार चार सौ ( ६४०० ) धनुष है। चतुरिन्द्रिय पर्याप्तकोंमें तीन हजार दो सौ ( ३२०० ) धनुष है। तीन इन्द्रिय पर्याप्तकोंमें एक हजार छह सौ ( १६०० ) धनुष है । द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंमें आठ सौ ( ८०० ) धनुष है । एकेंद्रिय पर्याप्तकोंमें चार सौ ( ४०० ) धनुष है । स्पर्शन इन्द्रियसे इतने क्षेत्रका अन्तर देकर स्थित हुए द्रव्यका जो स्पर्शनविषयक ज्ञान होता है वह स्पर्शनेन्द्रियअर्थावग्रह है और उसका जो आवारक कर्म हैं वह स्पर्शनेन्द्रिय-अर्थावग्रहावरणीय कर्म है।
नोइंद्रियके द्वारा उससे पृथग्भूत दृष्ट, श्रुत और अनुभूत पदार्थोंका जो ज्ञान उत्पन्न होता है
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