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५, ४, ३१.) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अप्पाबहुअं
( १८३ पदेसट्टदा अणंतगुणा। समोदाणकम्मपदेसट्टदा अणंतगुणा । एवं कायजोगिओरालिय-कायजोगि-ओरालियमिस्सकायजोगि-कम्मइयकायजोगि--अचक्खुदंसणिभवसिद्धिय-आहारिअणाहारीसु वत्तव्वं । णवरि ओरालियमिस्सकायजोगीसु किरियाकम्मपदेसट्टदा संखेज्जगुणा। ___ आदेसेण गदियाणवादेण णिरयगदीए णेरइएसु सम्वत्थोवा किरियाकम्मपदेसद्वदा । पओअकम्मपदेसटुदा असंखेज्जगुणा । को गुणगारो ? पदरस्स असंखेज्जविभागो। समोदाणकम्मपदेसटुदा अणंतगुणा । को गुणगारो? अभवसिद्धिएहि अणंतगुण सिद्धाणमणंतिमभागो । एवं सत्तसु पुढवीसु वत्तव्वं । देवा जाव सहस्सारे ति, वेउविय वेउव्वियमिस्सकायजोगीसु एवं चेव वत्तव्वं । आणदादि जाव उवरिमगेवज्जे त्ति ताव सम्वत्थोवा किरियाकम्मपदेसट्टदा । पओअकम्मपदेसटुदा विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण? मिच्छाइट्ठि-सासणसम्माइद्वि-सम्मामिच्छाइटिजीवपदेसमेत्तेणासमोदाणकम्मपदेसटुवा अणंतगणा । को गुणगारो? अभवसिद्धिएहि अणंतगुणो सिद्धाणमणंतिमभागो। अणुद्दिसादि जाव सम्वट्टसिद्धि ति सव्वत्थोवा किरियाकम्म-पओअकम्मपदेसटुवाओ। समोदाणकम्मपदेसटुदा अणंतगुणा ।।
तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु सव्वत्थोवा किरियाकम्मपदेसटुवा । आधाकम्मपदेसट्टवा प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इससे समवधानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । इसी प्रकार काययोगी, औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य, आहारी और अनाहारी जीवोंके कहना चाहिये । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगियोंमें क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता संख्यातगुणी है ।
.... विशेषार्थ-यहां प्रदेशार्थताअल्पबहुत्वमें तपःकर्म, क्रियाकर्म और प्रयोगकर्ममें जीवों के प्रदेश परिगणित किये गये हैं; अध:कर्म में औदारिक वर्गणाओंके प्रदेश परिगणित किये गये हैं, और ईर्यापथकर्म तथा समवधानकर्ममें कर्मपरमाणु परिगणित किये गये हैं। ____ आदेशसे गतिमार्गणाके अनुवादसे नरकगतिमें नारकियोंमें क्रियाकर्मकी प्रदेशार्थता सबसे स्तोक है । इससे प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता असंख्यातगुणी है । गुणकार क्या है ? जगप्रतरका असंख्यातवां भाग गुणकार है । इससे समवदानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है । गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है। इसी प्रकार सातों पृथिवियोंमें कहना चाहिये । सहस्रार कल्प तकके देवोंमें तया वैक्रियिककाययोगी और वैक्रियिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें इसी प्रकार कहना चाहिये । आनत कल्पसे लेकर उपरिम-उपरिम
वेयक तकके देवोंमें क्रियाकमकी प्रदेशार्थता सबसे स्तोक है। इससे प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता विशेष अधिक है । कितनी अधिक है ? मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंकी जितनी प्रदेशसंख्पा है उतनी अधिक है। इससे समवदानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगणी है। गुणकार क्या है ? अभव्योंसे अनन्तगुणा और सिद्धोंके अनन्तवें भागप्रमाण गुणकार है । अनुदिशसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देवोंमें क्रियाकर्म और प्रयोगकर्मकी प्रदेशार्थता सबसे स्तोक है । इससे समवदानकर्मकी प्रदेशार्थता अनन्तगुणी है।
• तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें क्रियाकर्म की प्रदेशार्थता सबसे स्तोक है। इससे अधःकर्मकी
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