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५, ४, ३१. )
कम्माणओगद्दारे पओअकम्मादीणं कालपरूवणा
( १०७
सव्वपदाणं वट्टमाणेण खेत्तभंगो। अदीदेण अट्ठ चोहसभागा देसूणा । आधाकम्मस्स ओघो । तवोइरियाकथवम्माणं खेत्तभंगो । सासणसम्माइट्ठी० सव्वपदाणं वट्टमाणेण लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अदीदेणं बारह चोहसभागा देसूणा । आधाकम्मस्स खेत्तभंगो । सम्मामिच्छाइट्ठी० दोष्णं पदाणं वट्टमाणेण लोयस्स असंखंज्जदिभागो । अदीदेण अट्ठ चोहसभागा देसूणा । आधाकम्मस्स ओघभंगो । मिच्छाइट्ठी ० सव्वपदाणमोघभंगो ।
सणियाणुवादेण सण्णीणं चक्खुदंसणीणं भंगो । असण्णीणं खेत्तभंगो । आहाराणुवादेण आहारएसु सव्वपदाणमोघभंगो। णवरि केवलिभंगो णत्थि । अणाहाराणं कम्मइयभंगो । णवरि तवोकम्मं लोगस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जा वा भागा सव्वलोगो वा । एवं पोसणं समत्तं ।
काला गमेण दुविहो णिद्देसो ओघेण आदेसेण य । ओघेण पओअकम्म-समोदाणकम्माणि केवचिरं कालादो होंति ? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च अणादिओ अपज्जवसिदो, अभवसिद्धिएसु कम्माणं पज्जवसाणाभावादो । अणादिओ सपज्जवसिदो भवसिद्धिएसु सिज्झमाणए कम्माणं पज्जवसाणुवलंभादो । आधाकम्म स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भाग प्रमाण है । अधःकर्मका स्पर्शन ओघ के समान है । तथा तपःकर्म और ईर्यापथकर्मका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । सासादनसम्यदृष्टियोंके सब पदोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण हैं । अतीत स्पर्शन कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण है । अधः कर्मका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । सम्यग्मिथ्यादृष्टियोंके दो पदोंका वर्तमान स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अतीत स्पर्शन कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण है। तथा अधःकर्मका स्पर्शन ओघ के समान है । मिथ्यादृष्टियोंके सब पदोंका स्पर्शन ओघ के समान है । विशेषार्थ -- यहां सासादनसम्यग्दृष्टियों के कुछ कम बारह बटे चौदह भाग प्रमाण स्पर्शन मारणान्तिक समुद्घातकी अपेक्षा कहा है, क्योंकि इनका मेरुमूलसे नीचे पांच राजु और ऊपर सात राजु स्पर्श देखा जाता है । शेष कथन सुगम हैं ।
संज्ञि मार्गणा अनुवादसे संज्ञियोंके सम्भव सब पदोंका स्पर्शन चक्षुदर्शनी जीवों के समान है, तथा असंज्ञी जीवोंके सम्भव सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है ।
आहारमार्गणाके अनुवादसे आहारकोंमें सब पदोंका स्पर्शन ओघके समान हैं । इतनी विशेषता है कि यहा केवलिसमुद्धात सम्बन्धी स्पर्शन नहीं होता । अनाहारकों के सम्भव पदोंका स्पर्शन कार्मणकाययोगी जीवोंके समान है । इतनी विशेषता है कि तपःकर्मका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, असंख्यात बहुभागप्रमाण और सब लोक प्रमाण हैं । इस प्रकार स्पर्शनानुगम समाप्त हुआ ।
कालानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है- ओघ निर्देश और आदेश निर्देश | ओघ से प्रयोगकर्म और समवधानकर्मका कितना काल हैं ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा अनादि - अनन्त काल है, क्योंकि अभव्योंके इन कर्मोंका अन्त नहीं होता । अनादि सान्त काल है, क्योंकि सिद्धिको प्राप्त होनेवाले भव्योंमें इन कर्मोंका अन्त देखा जाता
अ आ-काप्रतिषु ' सिज्झमाणासु' इति पाठः ।
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