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१७८ ) छक्खंडागमे वग्गणा-खं
(५, ४, ३१. किरियाकम्मदव्वदा । पओअकम्म-समोदाणकम्मदव्वदाओ दो वि सरिसाओ विसेसाहियाओ । केत्तियमेत्तो विसेसो ? मिच्छाइटि-सासणसम्माइटि-सम्मामिच्छाइट्टिमेत्तो विसेसो । उवरि पत्थि अप्पाबहुगं । कुदो ? तिण्णं पि पदाणं तत्थ सरिस*तुवलंभादो।
इंदियाणुवादेण एदंदिएसु सव्वत्थोवा आधाकम्मदव्वदा । पओअकम्म समोदाणकम्मदवट्ठदाओ दो वि सरिसाओ अणंतगुणाओ। एवं सव्वएईदिय-सव्ववणप्फदिदोअण्णाणि-मिच्छाइटि-असणि ति वत्तव्वं । ओरालियमिस्सकायजोगीसु सव्वत्थोवा इरियावथकम्म-तवोकम्माणं दव्वट्ठदाओ। किरियाकम्मदवढदा संखेज्जगुणा । सेसं कायजोगिभंगो। वेउब्वियकायजोगीसु सव्वत्थोवा किरियाकम्मदव्वटदा। पओअकम्मसमोदाणकम्मदव्वट्ठदाओ दो वि सरिसाओ असंखेज्जगणाओ। एवं वेउब्वियमिस्सकायजोगीसु । (आहार-आहारमिस्सकायजोगीसु पओअकम्म-समोदाणकम्म-तवोकम्म
द्रव्यार्थता में दोनों ही समान होकर विशेषाधिक हैं। कितनी अधिक है। यहां मिथ्यादृष्टि, सासादनसस्यग्दृष्टि और सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंका जितना प्रमाण है उतनी अधिक हैं। इससे आगे वहां अल्पबहुत्व नहीं है, क्योंकि, तीनों ही पदोंकी संख्या वहां समान पाई जाती है।
इन्द्रियमार्गणाके अनुवादसे एकेन्द्रियोंमें अधःकर्मकी द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है। इससे प्रयोगकर्म और समवदानकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर अनन्त गुणी हैं। इसी प्रकार सब एकेन्द्रिय, सब वनस्पतिकायिक, दो अज्ञानी, मिथ्यादृष्टि, और असज्ञी जीवोंके कहना चाहिये।
औदारिमिककाययोगियोंमें ईर्यापथकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थतायें सबसे स्तोक हैं। इनसे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी है । शेष कथन काययोगियों के समान है।
__विशेषार्थ-जब सयोगकेवली केवलिसमुद्धात करते समय औदारिकमिश्रकाययोगको प्राप्त होते हैं तभी औदारिकमिश्रकायमें ईर्यापथकर्म और तपःकर्म सम्भव हैं, किन्तु क्रियाकर्म अविरतसम्यग्दृष्टियोंके औदारिकमिश्रकाययोगके रहते हुए ही होता है। यही कारण है कि यहां ईर्यापथकर्म और तपःकर्मकी द्रव्यार्थतासे क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थता संख्यातगुणी कही है।
वैक्रियिककाययोगियोंमें क्रियाकर्म की द्रव्यार्थता सबसे स्तोक है । इससे प्रयोगकर्म और समवदानकर्मकी द्रव्यार्थतायें दोनों ही समान होकर असंख्यातगुणी हैं। इसी प्रकार वैक्रियिकमिश्रकाययोगियोंके कहना चाहिये। (आहारक और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें प्रयोगकर्म समवदानकर्म, तपःकर्म और क्रियाकर्मकी द्रव्यार्थतायें चारों ही समान होकर स्तोक हैं। तथा अधःकर्मकी द्रव्यार्थता उनसे अनन्तगुणी है । ) कार्मणकाययोगियोंके औदारिकमिश्रकाययोगियोंके
* आ-काप्रत्योः · परिसमत्तुव-' , ताप्रती 'परिसत्तुव-', इति पाठः ।
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