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१०८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
(५, ४, ३१. केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पडुच्च सम्वद्धा। एगजीवं पडच्च जहण्णेण एगसमओ। कुदो ? जीवादो णिज्जिण्णपढमसमए ओरालियभावेणच्छिय बिदियसमए छंडिदओरालियणोकम्मभावेसु खंधेसु एगसमयकालुवलंभादो। उक्कस्सेण असंखेज्जा लोगा। कुदो? जीवादो णिज्जिण्णणोकम्मक्खंधाणमुक्कस्सेण ओदइयभावमछंडिय असंखेज्जलोगमेत्तकालमवट्ठाणुवलंभादो। इरियावथतवोकम्माणि केवचिरं कालादो होंति? णाणाजीवं पडुच्च सव्वद्धा । एगजीवं पडुच्च जहण्णण एगसमओ अंतोमुहत्तं च । कुदो* ? उवसंतकसायस्स इरियावथकम्मेण एगसमयमच्छिदूण बिदियसमए देवेसु उववण्णस्स एगसमयकालवलंभादो। तवोकम्मजहण्णकालो अंतोमहत्तं । कूदो? विट्रमग्गम्मि अट्ठावीससंतकम्मियमिच्छाइटिम्मि• संजमं घेत्तण सव्वजहण्णेण कालेण असंजमं गदम्मि तदुवलंभादो। असंजदसम्मादिट्ठी संजदासंजदो वा संजमस्स यवो। उक्कस्सेण दोण्णं पि कालो देसूणपुवकोडी। कुदो ? देव-जेरइयखइयसम्माइद्विस्स पुवकोडाउएसु मणुस्सेसु उववज्जिय गम्भादिअट्ठवरसाणं अंतोमुत्तम्भहियाणं उरि संजमं घेतूण तवोकम्मस्स आदि करिय पुणो अंतोमहुत्तेण खीणकसायगुणढाणं पडिवज्जिय इरियावथकम्मस्स आदि करिय सजोगी होदूण अंतोमुत्तब्भहियअटुवस्सेहि ऊणियं पुवकोडि सव्वमिरियावहं तवीकम्मं च अणुपालिदूण जिव्वुअस्स तदुवलंभादो। है। अधःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है। एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल एक समय है, क्योंकि, जो स्कंध जीवमे निर्जीण होने के प्रथम समयमें औदारिक रूपसे रहते हैं और दूसरे समयमें औदारिक नोकर्मभावका त्याग कर देते हैं उन स्कन्धोंम अधःकर्मका एक समय काल उपलब्ध होता है । उत्कृष्ट काल असंख्यात लोक प्रमाण है, क्योंकि जो नोकर्मस्कन्ध जीवसे निर्जीर्ण हो जाते हैं उनका औदयिक भावको न छोडकर उत्कृष्ट अवस्थान असंख्यात लोकप्रमाण काल तक पाया जाता है। ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका कितना काल है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सब काल है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य काल ईर्यापथ कर्मका एक समय और तपःकर्मका अन्तर्मुहर्त है, क्योंकि, जो उपशान्तकषाय जीव ईपिथकर्म के साथ एक समय रहकर दूसरे समयमें देवोंमें उत्पन्न हुआ है उसके ईर्यापथकर्मका एक समय काल उपलब्ध होता है । तपःकर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहुर्त है, क्योंकि, दृष्टमार्ग अट्ठाईस प्रकृतियोंके सत्कर्मवाला जो मिथ्यादृष्टि जीव संयमको ग्रहणकर सबसे जघन्य काल द्वारा असंयमको प्राप्त होता है उसके तपःकर्मका जघन्य काल अन्तर्मुहर्त उपलब्ध होता है । असंयतसम्यग्दृष्टि और संयतासंयत जीवको संयममें ले जाकर यह काल ले आना चाहिये। तथा दोनोंका उत्कृष्ट काल कुछ कम पूर्वकोटि प्रमाण है, क्योंकि जो क्षायिकसम्यग्दृष्टि देव और नारकी जीव मरकर पूर्वकोटिप्रमाण आयुवाले मनुष्योंमें उत्पन्न होकर गर्भसे लेकर आठ वर्ष और अंतर्महर्त के बाद संयमको ग्रहण कर तपःकर्मको प्रारम्भ करके पुनः अन्तर्मुहुर्तके द्वारा क्षीणकषाय गुणस्थानको प्राप्त होकर ईर्यापथकर्मको प्रारम्भ करके सयोगी होते हैं और वहांपर अन्तर्मुहुर्त और आठ वर्ष कम एक पूर्वकोटि काल तक पूरी तरहसे ईर्यापथकर्म और तपःकर्मका पालन कर निर्वाणको प्राप्त
* अ-आ-काप्रतिषु ' एगसमओ कुदो ' इति पाठः1 . अ-आ-काप्रतिषु 'मिच्छाइट्टि ' इति पाठः] ४ प्रतिषु 'संजदासजदा ' इति पाठः । 9 अप्रतो — ओणिय ' इति पाठः ।
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