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५ , ४ , ३१ ) कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मादीणं अंतरपरूवणा ( १३५ पुढवीए । एवं छसु पुढवीसु । णवरि एक्क-तिण्णि-सत्त-दस-सत्तारस-बावीससागरोवमाणि पंचहि अंतोमहत्तेहि ऊणाणि । तिरिक्खगदीए तिरिक्खेसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणं णाणेगजीवं पडुच्च णत्थिअंतरं णिरंतरं आधाकम्म-किरियाकम्माणं ओधभंगो। पंचिदियतिरिक्खेसु पओअकम्म-समोदाणकम्माणं णाणेगजीवं पडुच्च पत्थि अंतरं (जिरंतरं)। आधाकम्मरस अंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीवं पड़च्च णत्यि अंतरं गिरंतरं । एगजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमओ। उक्कस्सेण तिसमऊणपंचाणउदिपुव्वकोडीहि सादिरेयाणि तिणि पलिदोवमाणि । कुदो ? एक्को देवो वा रइयो वा मणुस्सो वा सण्णिपंचिदियपज्जत्तएसु पुव्वकोडाउअतिरिक्खेसु उववण्णो । तत्थ उववादजोगेण पुव्वकोडिपढमसमए जे ओरालियसरीरणिमित्तं गहिदा परमाणू तेसि बिदियसमए णिज्जिण्णाणं तदियसमए मुक्कोरालियभावाण मंतरस्स आदी जादा। तदो पहुडि पंचाणउदिपुव्वकोडीओ तिसमऊगतिणिपलिदोवमाणि च अंतरिदूण पुणो चरिमसमए तेसु चेव पुव्वणिज्जिण्णपरमाणसु ओरालियसरीरणिमित्तमागदेसु आधाकम्मस्स लद्धमंतरं। एवं तीहि समएहि ऊणसगढिदिमेत उक्कस्संतरुवलंभादो। किरियाकम्मस्स अंतरं केवचिरं कालादो होदि?णाणाजीवं पडुच्च णत्थि अंतरं णिरंतरं। एगजीवं पडुच्च जहण्णण अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण तिणि पलिदोवमाणि पुवकोडिपुधत्तेण सादिरेयाणि। कुदो ? एक्को एक जीवकी अपेक्षा क्रियाकमका उत्कृष्ट अन्तरकाल क्रमसे पांच अन्तर्मुहुर्त कम एक सागर, पांच अन्तर्मुहूर्त कम तीन सागर, पांच अन्तर्मुहूर्त कम सात सागर, पांच अन्तर्मुहुर्त कम दस सागर, पांच अन्तर्मुहूर्त कम सत्रह सागर और पांच अन्तर्मुहूर्त कम बाईस सागर है।
तिर्यंचगतिमें तिर्यंचोंमें प्रयोगकर्म और समवदानकर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है। अधःकर्म और क्रियाकर्मका अन्तरकाल ओघके समान है । पंचेन्द्रिय तिर्यंचोंमें प्रयोगकर्म और समवदान कर्मका नाना जीवों और एक जीवकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, निरन्तर है। अधःकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तरकाल नहीं है, वह निरन्तर है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल एक समय है और उत्कृष्ट अन्तरकाल तीन समय कम और पंचानबै पूर्वकोटि अधिक तीन पल्यप्रमाण है, क्योंकि कोई एक देव, नारकी या मनुष्य पूर्वकोटिप्रमाण आयुवाले संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त तिर्यंचोंमें उत्पन्न हुआ। वहां उसने उपपाद योगके द्वारा पूर्वकोटिप्रमाण आयुके प्रथम समयमें औदारिकशरीरके निमित्त जो पुद्गलपरमाणु ग्रहण किये उनकी दूसरे समयमें निर्जरा होकर तीसरे समयमें वे औदारिक भावसे रहित हो गये। इसलिये इनके अन्तरकी आदि हुई। फिर वहांसे लेकर पंचानबै पूर्वकोटिप्रमाण कालका और तीन समय कम तीन पल्यप्रमाण कालका अन्तर देकर अन्तिम समयमें पूर्वनिर्जीर्ण उन्हीं पुदगलपरमाणुओंके औदारिकशरीरके निमित्त प्राप्त होनेपर अधःकर्मका अन्तरकाल निकल आता है। इस प्रकार तीन समय कम अपनी सि प्रमाण उत्कृष्ट अन्तर प्राप्त होता है । क्रियाकर्मका अन्तरकाल कितना है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है, वह निरन्तर है । एक जीवकी अपेक्षा जघन्य अन्तरकाल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट-अन्तरकाल पूर्वकोटिपृथक्त्व अधिक तीन पल्य है, क्योंकि, अट्ठाईस प्रकृतियोंकी ४ ताप्रती ( अंतरं णिरंतरं ) इति पाठः । प्रतिषु ' मुक्कोदइयभावाण' इति पाठः । ताप्रती · विसमऊण-' इति पाठ।।
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