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२४) छखंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ३, २३. पडिबंधदि, सुहमस्स सुहमेण बादरक्खंधेण वा पडिबंधकरणाणुववत्तीदो।
सुहुमं णाम सण्णं, ण अपडिहण्णमाणमिदि चे-ण, आयासादीणं महल्लाणं सुहमत्ताभावप्पसंगादो। तदो सरूपापरिच्चाएण सव्वप्पणा परमाणुस्स परमाणुम्मि पवेसो सव्वफासो त्ति ण दिलैंतो वइधम्मिओ। . जो सो फासफासो णाम ।। २३ ।।
, एदस्सत्थो वुच्चदे... सो* अट्टविहो-कक्खडफासो मउवफासो गरुवफासो लहुवफासो णिद्धफासो रुक्खफासो सीदफासो उहफासो । सो सव्वो फासफासो णाम ॥ २४ ।।
स्पृश्यत इति स्पर्शः कर्कशादि । स्पृश्यत्यनेनेति स्पर्शस्त्वगिन्द्रियम् । तयोर्द्वयोः स्पर्शयोः स्पर्शः स्पर्शस्पर्शः । स च अष्टविधः-कर्कशस्पर्शः मृदुस्पर्शः गुरुस्पर्शः लघुस्पर्शः करता है, क्योंकि, सूक्ष्मका दूसरे सूक्ष्म स्कन्धके द्वारा या वादरके द्वारा प्रतिवन्ध करने का कोई कारण नहीं पाया जाता।
शंका- सूक्ष्मका अर्थ बारीक है। दूसरेके द्वारा नहीं रोका जाना, यह उसका अर्थ नहीं है? समाधान-नहीं, क्योंकि, सूक्ष्मका यह अर्थ करनेपर महान् आकाश आदि सूक्ष्म नहीं ठहरेंगे।
इसलिये अपने स्वरूपको छोडे विना एक परमाणुका दूसरे परमाणमें सर्वात्मना प्रवेशका नाम सर्वस्पर्श कहलाता है, अतः सूत्रमे सर्वस्पर्शके लिये परमाणु का दिया गया दृष्टान्त वैधर्मा नहीं है।
विशेषार्थ- सर्वस्पर्शमें एक वस्तुका दूसरी वस्तुके साथ पूरा स्पर्श लिया गया है और इसके उदाहरण स्वरूप परमाणु द्रव्य उपस्थित किया गया है । एक परमाणुका दूसरे परमाणुके साथ देश और सर्व दोनों प्रकारका स्पर्श देखा जाता है। परमाणु निरंश होता है या प्रश्न पुराना है। परमाणु अखण्ड और एक है, इस नयकी अपेक्षा वह निरंश माना किन्तु प्रत्येक परमाणु में पूर्व पश्चिम आदि भाग देखे जाते हैं, इस नयकी अपेक्षा वह सांश माना जाता है । इसलिये जब एक परमाणुका दूसरे परमाणुके साथ एकप्रदेशावगाही स्पर्श होता है तब वह सर्वस्पर्श कहलाता है और जब दोप्रदेशावगाही स्पर्श होता है तब वह देशस्पर्श कहलाता है । इसी प्रकार सर्वत्र जानना चाहिये।
अब स्पर्शस्पर्शका अधिकार है ।। २३॥ अब इस सूत्रका अर्थ कहते है
वह आठ प्रकारका है-कर्कशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, स्निग्धस्पर्श, रुक्षस्पर्श, शीतस्पर्श और उष्णस्पर्श । वह सब स्पर्शस्पर्श है ॥ २४ ॥ ..: जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है, यथा कर्कश आदि। जिसके द्वारा स्पर्श किया जाय वह स्पर्श है, यथा त्वचा इन्द्रिय । इन दोनों स्पर्शोका स्पर्श स्पर्शस्पर्श कहलाता है। वह आठ प्रकारका है-कर्कशस्पर्श, मृदुस्पर्श, गुरुस्पर्श, लघुस्पर्श, स्निग्धस्पर्श, रूक्षस्पर्श, शीतस्पर्श
अ-ताप्रत्याः 'जा सो' इति पाठः । * अप्रतौ 'कर्कशादीहि', ताप्रतौ 'कर्कशादीहि (नि)' इति पाठः ।
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