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५०) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ४, २४. बंधमागच्छंति त्ति इरियावहकम्मं मउअंति भण्णदे। सकसायजीववेयणीयसमयपबद्धादो पदेसेहि संखेज्जगुणत्तं दळूण बहुअमिदि भण्णदे। बादर-बहुआणं को विसेसो? बादरसद्दो कम्मक्खंधस्स थूलत्तं भणदि, बहुअ-सद्दो वि पदेसगयसंखाए बहुत्तं भणदि, तेण ण सद्दभेदो चेव ; किंतु अत्थभेदो वि। ण च थूलेण बहुसंखेण चेव होदव्वमिदि णियमो अत्थि? थूलेरंडरुक्खादो सह ,लोहगोलएगरूवत्तण्णहाणुववत्तिबलेण पदेसबहुत्तुवलंभादो । पोग्गलपदेसु चिरकालावट्ठाणणिबंधणणिद्धगुणपडिवक्खगुणेण पडिग्गहियत्तादो ल्हुक्खं । जइ एवं तो इरियावहकम्मम्मि ण क्खंधो, ल्हुक्खेगगुणाणं परोप्परबंधाभावादो* ? ण, तत्थ वि दुरहियाणं बंधुवलंभादो। च-सद्द-णिद्देसो किंफलो? इरियावहकम्मस्स कम्मक्खंधा सुअंधा सच्छाया त्ति जाणावणफलो। इरियावहकम्मक्खंधा पंचवण्णाण होंति, हंसधवला चेव होंति त्ति जाणावणट्टं सुक्किलणिद्देसो कदो।एत्थतण-चेव-सद्दो सव्वत्थ जोजयव्वोपडिवखणिराकरणÉ। इरियावहकम्मक्खंधा रसेण सक्करादो अहियमहुरत्तजुत्ता प्राप्त होते हैं, इसलिये ईयापथ कर्मको ‘मृदु' कहा है।
___ कषायसहित जीवके वेदनीय कर्म के समयप्रवद्धसे यहां बँधने वाला समयप्रबद्ध प्रदेशोंकी अपेक्षा संख्यातगुणा होता है, ऐसा देखकर ईर्यापथ कर्मको 'बहुत' कहा है।
शंका- बादर और बहुत में क्या अन्तर है ?
समाधान-'बादर' शब्द कर्मस्कन्धकी स्थूलताको कहता है जब कि 'बहुत' शब्द प्रदेशगत संख्याके बहुत्वका प्रतिपादन करता है, इसलिये इन दोनोंमें केवल शब्दभेद ही नहीं है ; किन्तु अर्थभेद भी है। स्थूल बहुत संख्यावाला ही होना चाहिये, एसा कोई नियम नहीं है; क्योंकि, स्थूल एरण्ड वृक्षसे, सूक्ष्म लोहेके गोले में एकरूपता अन्यथा बन नही सकती, इस युक्तिके बलसे प्रदेशबहुत्व देखा जाता है।
ईर्यापथ कर्मस्कन्ध रुक्ष है, क्योंकि, पुद्गलप्रदेशोंमें चिरकाल तक अवस्थानका कारण स्निग्ध गुणका प्रतिपक्षभूत गुण उसमें स्वीकार किया गया है ।
शंका- यहांपर रुक्ष गुण यदि इस प्रकार है तो ईर्यापथकर्मका स्कन्ध नहीं बन सकता, क्योंकि, एकमात्र रुक्ष गुणवालोंका परस्पर बन्ध नहीं होता ।
समाधान- नहीं, क्योंकि, वहां भी द्वयधिक गुणवालोंका बन्ध पाया जाता है। शंका- गाथा में जो 'च' शब्दका निर्देश किया है उसका क्या फल है ?
समाधान- ईर्यापथ कर्मके कर्मस्कन्ध अच्छी गन्धवाले और अच्छी कान्तिवाले होते हैं, यह जताना 'च' शब्दका फल है।
ईर्यापथ कर्मस्कन्ध पांच वर्णवाले नहीं होते, किन्तु हंसके समान धवल वर्णवाले ही होते हैं, इस बात का ज्ञान करानेके लिये गाथामें 'शुक्ल' पदका निर्देश किया है ।
यहां पर गाथामें आया हुआ 'चेव' शब्दका अन्वय प्रतिपक्ष गणका निराकरण करने के लिये सर्वत्र करना चाहिये। ईयापथ कर्मस्कन्ध रसकी अपेक्षा सक्करसे भी अधिक माधुर्य युक्त होते हैं, इस बातका ज्ञान कराने के लिये गाथाम 'मन्द' पदका निर्देश किया है।
3 प्रतिषु ‘सण्ण' इति पाठः। O आ-ताप्रत्योः 'ल्हुक्खगुणाणं' इति पाठः। * ताप्रती 'बंधाभावदो' इति पाठः । 1 अप्रतौ 'सुअधा', आ-ताप्रत्योः 'सुअद्धा' इति पाठः ।
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