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५, ४, २४. )
कम्माणुओगद्दारे इरियावहकम्मपरूवणा
यहोवा ? ण, वेदिदं पि असादवेदणीयं ण वेदिदं; सगसहकारिकारणघादिकम्माभावेण दुक्खजण्णसत्तिविरोहादो । णिब्बीयपत्तेयसरीरस्सेव णिब्बीयअसादावेदणीयस्स उदओ किरण जायदे ? ण, भिण्णजादियाणं कम्माणं समाणसत्तिणियमाभावादो । जदि असादावेदणीयं णिष्फलं चैव, तो उदओ अस्थि त्ति किमिदि उच्चदे ? ण, भूदपुव्वणयं पडुच्च तदुत्तदो । किंच ण सहकारिकारणघादिकम्माभावेणेव सेसकम्माणि व्व पत्तणिबीभावमसादावेदणीयं, किंतु सादावेदणीयबंधेण उदयसरूवेण उदयागद उक्कस्साणुभाग दावेदणीय सहकारिकारणेण पडियउदयत्तादो वि । ण च बंधे उदयसरूवे संते सादावेदणीयगोच्छा थिउक्कसंकमेण असादावेदणीयं गच्छदि, विरोहादो । थिउक्कसंकमाभावे * सादासादागमजोगिचरिमसमए संतवोच्छेदो पसज्जदित्ति भणिदेण, वोच्छिणसाद बंधम्म अजोगि म्हि सादोदयणियमाभावादो। सादावेदणीयस्स उदयइसलिये उनके लक्षण में भी ईयापथका लक्षण घटित हो जाता है |
असातावेदनीयका वेदन करनेवाले जिनदेव आमय और तृष्णासे रहित कैसे हो सकते हैं यह कहना भी ठीक नहीं है; क्योंकि, असातावेदनीय वेदित होकर भी वेदित नहीं है, क्योंकि, अपने सहकारी कारणरूप घातिकर्मोंका अभाव हो जानेसे उसमें दुःखको उत्पन्न करनेकी शक्ति मानने में विरोध आता है ।
शंका- निर्बीज हुए प्रत्येक शरीर के समान निर्बीज हुए असाता वेदनीयका उदय क्यों नहीं होता है ?
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समाधान- नहीं, क्योंकि, भिन्नजातीय कर्मोंकी समान शक्ति होने का कोई नियम नहीं है शंका- यदि असातावेदनीय कर्म निष्फल ही हैं तो वहां उसका उदय है, ऐसा क्यों कहा जाता है ?
समाधान- - नहीं, क्योंकि, भूतपूर्व नयकी अपेक्षासे वैसा कहा जाता है ।
दूसरे सहकारी कारणरूप घाति कर्मों का अभाव होनेसे ही शेष कर्मों के समान असातावेदनीय कर्म न केवल निर्बीज भावको प्राप्त हुआ है, किन्तु उदयस्वरूप सातावेदनीयका बन्ध होनेसे और उदयागत उत्कृष्ट अनुभागयुक्त सातावेदनीय रूप सहकारी कारण होनेसे उसका उदय भी प्रतिहत हो जाता है । यदि कहा जाय कि बन्धके उदयस्वरूप रहते हुए सातावेदनीय कर्मकी गोपुच्छा स्तिवुक संक्रमणके द्वारा असातावेदनीयको प्राप्त होती होगी, सो यह भी बात नहीं है; क्योंकि, ऐसा माननेमें विरोध आता है |
शंका- यदि यहां स्तिवक संक्रमणका अभाव मानते हैं तो साता और असाताकी सत्त्वव्युच्छित्ति अयोगी अन्तिम समयमें होनेका प्रसंग आता है ?
समाधान- नहीं, क्योंकि, साताके बन्धकी व्युच्छित्ति हो जानेपर अयोगी गुणस्थान में साताके उदयका कोई नियम नहीं है ।
शंका- इस तरह तो सातावेदनीयका उदयकाल अन्तर्मुहूर्त विनष्ट होकर कुछ कम पूर्व* अ-आप्रत्योः ' गोच्छादी उक्कस्संक मेण ', ताप्रतौ ' गोकुच्छादी ( थी ) उक्कस्संकमेण ' इति पाठ: । प्रतिषु 'त्थी उस्सं कमाभावे ' इति पाठः ।
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