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छ खंडागमे वग्गणा - खंडं
( ५,३, २९
कम्म-णोकम्मसंणियासो परूविदो । कम्मसंणियासो पुण पुव्वं परूविदो त्ति पुणरुत्त
भरण ण परुविदो । एवं बन्धफासो गदो ।
३४ )
जो सो भवियफासो णाम ।। २९ ।।
तस्स अत्थो वुच्चदे
जहा विस- कूड-जंत-पंजर-कंदय वग्ग्रादीणि कत्तारो समोदिवारो य भवियो फुसणदाए णो य पुण ताव तं फुसदि सो सव्वो भवियफासो णाम ।। ३० ।।
विसं सुपसिद्धं । कागुंदुरादिधरणट्टमोद्दिदं कूडं णाम। सीह-वग्धधरणदुमोद्दिदमभंतरकयच्छालियं जंतं णाम । तित्तिर-लावादिधरणट्ठ रइदकलिज कलावो पंजरो णाम । हत्थिधरणट्टमोद्दिदवारिबंधो कंदओ णाम । हरिण वराहादिमारणदुमोद्दिदकंदा वा कंदओ णाम । वग्गुरा सुप्पसिद्धा । इच्चादीणि दव्वाणि इच्छिदवत्थुफुसणमोदाणि भवियफासो णाम । एदेसि जंतादीणं कत्तारो करेंता ओद्दिदारो य एदेसि जंता दीणमिच्छदपदे से टुवेंता च भवियफासो णाम, कारणे कज्जुवयारादो । किंणिबंधनो
इस प्रकार कर्म और नोकर्म संनिकर्षका कथन किया। कर्मसंनिकर्षका कथन तो पहले ही कर आये हैं, इसलिये पुनरुक्त दोषके भयसे उसका यहां पुनः कथन नहीं किया। इस प्रकार बन्धस्पर्शका कथन समाप्त हुआ ।
अब भव्य स्पर्शका अधिकार है ।। २९ ।।
उसका अर्थ कहते हैं --
यथा - विष, कूट, यन्त्र, पिंजरा, कन्दक और पशुको फँसानेका जाल आदि तथा इनके करनेवाले और इन्हें इच्छित स्थान में रखनेवाले स्पर्शनके योग्य होंगे परन्तु अभी उन्हें स्पर्श नहीं करते; वह सब भव्य स्पर्श है ।। ३०॥
विष सुप्रसिद्ध है | कौआ और चूहा आदिके धरनेके लिये जो बनाया जाता है उसे कूट कहते हैं । जो सिंह और व्याघ्र आदिके धरने के लिये बनाया जाता है और जिसके भीतर बकरा रखा जाता है उसे यन्त्र कहते हैं । तीतर और लाव आदिके पकड़नेके लिये जो अनेक छोटी छोटी पंचे लेकर बनाया जाता है उसे पिंजरा कहते हैं। हाथीके पकडने के लिये जो वारिबन्ध बनाया जाता है उसे कन्दक कहते हैं । अथवा हरिण और सूअर आदिके मारनेके लिये जो फंदा तैयार किया जाता है उसे कन्दक कहते हैं । वग्गुरा प्रसिद्ध ही है । इच्छित वस्तुके स्पर्शन अर्थात् पकडने के लिये इत्यादि द्रव्योंका रखना भव्यस्पर्श कहलाता है । तथा इन यन्त्रादिके करनेवाले, और 'ओद्दिदारो' अर्थात् इन यन्त्रादिको इच्छित स्थानपर रखने वाले भी भव्यस्पर्श कहलाते हैं, क्योंकि, यहां कारणमें कार्य का उपचार किया गया है ।
यन्त्रादिकको स्पर्श संज्ञा किस निमित्तसे प्राप्त होती है, ऐसा पूछनेपर कारणका कथन
अप्रतौ 'लावदि' इति पाठ: । ॐ प्रतिषु 'कलिच' इति पाठः ।
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