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५, ४, १५.) . कम्माणुओगद्दारे पओअकम्मपरूवणा ण, कम्मसण्णिदे मणुस्से सब्भावढवणाए उवलंभादो। एवं फासादिसु वि सम्भावट्ठवणाए संभवो वत्तव्वो। एवं ठवणकम्मपरूवणा गदा।
जं तं दव्वकम्म णाम ।। १३ ॥ तस्स अत्थपरूवणं कस्सामो
जाणि दव्वाणि सब्भावकिरियाणिप्फण्णाणि तं सव्वं दव्वकम्म णाम ।। १४11
जीवदव्वस्स णाण-दसणेहि परिणामो सब्भावकिरिया, पोग्गलदव्वस्स वण्ण-गंधरस-फासविसेसेहि परिणामो सब्भावकिरिया, धम्मदव्वस्स जीव-पोग्गलदव्वाणं गमणागमणहे उभावेण परिणामो सम्भावकिरिया, अधम्मदव्वस्स जीव-पोग्गलाणमव*टाणस्स णिमित्तभावेण परिणामो सब्भावकिरिया, कालदव्वस्स जीवादिदव्वाणं परिणामस्स णिमित्तभावेण परिणामो सम्भावकिरिया, आयासदव्वस्स सेसदव्वाणमोगाहणदाणभावेण परिणामो सम्भावकिरिया। एवमादीहि किरियाहि जाणि णिप्फण्णाणि सहावदो चेव दव्वाणि तं सव्वं दव्वकम्मं णाम ।
जं तं पओअकम्मं णाम ॥ १५ ॥ तस्स अत्थपरूवणं कस्सामो
इसी प्रकार स्पर्शादिकोंमें भी सद्भावस्थापना घटित कर कहनी चाहिये । इस प्रकार स्थापनाकर्मप्ररूपणा समाप्त हुई।
अब द्रव्यकर्मका अधिकार है ।।१३॥ उसके अर्थका कथन करते हैंजो द्रव्य सद्भावक्रियानिष्पन्न है वह सब द्रव्यकर्म है ॥१४॥
जीव द्रव्यका ज्ञान-दर्शन आदिरूपसे होनेवाला परिणाम उसकी सद्भावक्रिया है। पुदगल द्रव्यका वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श विशेष रूपसे होनेवाला परिणाम उसकी सद्भावक्रिया है। धर्मद्रव्यका जीव और पुद्गलोंके गमनागमनके हेतुरूपसे होनेवाला परिणाम उसकी सद्भावक्रिया है। अधर्मद्रव्यका जोव और पुद्गलोंके अवस्थानके निमित्तरूपसे होनेवाला परिणाम उसकी दभावक्रिया है। कालद्रव्यका जीवादि द्रव्यों के परिणामके निमित्तरूपसे होनेवाला परिणाम उसकी सदभावक्रिया है। और आकाशद्रव्यका शेष द्रव्योंको अवगाहनदान देने रूपसे होनेवाला परिणाम उसकी सद्भावक्रिया है । इत्यादि क्रियाओं द्वारा जो द्रव्य स्वभावसे ही निष्पन्न हैं वह सब द्रव्यकर्म है।
विशेषार्थ- मल द्रव्य छह हैं, और वे स्वभावसे परिणमनशील हैं। अपने अपने स्वभावके अनुरूप उनमें प्रतिसमय परिणमन क्रिया होती रहती है और क्रिया कर्मका पर्यायवाची है। यही कारण है कि यहां द्रव्यकर्म शब्दसे मूलभूत छह द्रव्योंका ग्रहण किया है ।
अब प्रयोगकर्मका अधिकार है ॥ १५॥ उसके अर्थका कथन करते हैं@ प्रांतषु तत्थ ' इति पाठः । * अप्रतौ 'पोग्गलमव ' इति पाठः ।
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