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३८) छक्खंडागमे वग्गणा-खंडं
( ५, ४, २. तत्थ इमाणि सोलस अणुयोगद्दाराणि णादवाणि भवंतिकम्मणिक्खेवे कम्मणयविभासणदाए कम्मणामविहाणे कम्मदव्वविहाणे कम्मक्खेत्तविहाणे कम्मकालविहाणे कम्मभावविहाणे कम्मपच्चयविहाणे कम्मसामित्तविहाणे कम्मकम्मविहाणे कम्मगइविहाणे कम्मअणंतरविहाणे कम्मसंणियासविहाणे कम्मपरिमाणविहाणे कम्मभागाभागविहाणे कम्मअप्पाबहुए त्ति ॥ २ ।।
एदाणि सोलस चेव अणुयोगद्दाराणि होति, अण्णेसिमसंभवादो। कम्मणिक्खेवे त्ति ।। ३ ।।
संशय-विपर्ययानध्यवसायस्थितं जीवं निश्चये क्षिपतीति निक्षेपः, अप्रकृतापोहनमखन प्रकृतप्ररूपणाय अप्पितवाचकस्य वाच्यप्रमाणप्रतिपादनं वा निक्षेपः । तस्स णिक्खेवस्स अत्थो वुच्चदे
दसविहे कम्मणिक्खेवे--णामकम्मे ठवणकम्मे दवकम्मे पओअकम्मे समदाणकम्मे आधाकम्मे इरियावहकम्मे तवोकम्मे किरियाकम्मे भावकम्मे चेदि ॥ ४ ॥
दसविहो कम्मणिक्खेवो। कम्मणयविभासणदाए को णओ के कम्मे इच्छदि ? ॥ ५ ॥
उसमें ये सोलह अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-कर्मनिक्षेप, कर्मनयविभाषणता, कर्मनामविधान, कर्मद्रव्यविधान, कर्मक्षेत्रविधान, कर्मकालविधान, कर्मभावविधान, कर्मप्रत्ययविधान, कर्मस्वामित्वविधान, कर्मकर्मविधान, कर्मगतिविधान, कर्मअनन्तरविधान कर्मसंनिकर्षविधान,कर्मपरिमाणविधान, कर्मभागाभागविधान औरकर्मअल्पबहत्व॥२॥
प्रकृतमें ये सालह ही अधिकार होते हैं, क्योंकि, इनके सिवा अन्य अधिकार यहां सम्भव नहीं हैं।
अब कर्मनिक्षेपका अधिकार है ॥३॥
जो संशय, विपर्याय और अनध्यवसायमें स्थित जीवको किसी एक निर्णयपर पहुंचाता है उसे निक्षेप कहते हैं। या अप्रकृत अर्थके निराकरण द्वारा प्रकृत अर्थका कथन करनेके लिये मुख्य वाचकके वाच्यार्थको प्रमाणताका प्रतिपादन करता है उसे निक्षेप कहते हैं। अब उस निक्षेपका अर्थ कहते हैं
कर्मनिक्षेप दस प्रकारका है-नामकर्म, स्थापनाकर्म, द्रव्यकर्म, प्रयोगकर्म समवदानकर्म, अधःकर्म, ईर्यापथकर्म, तपःकर्म, क्रियाकर्म और भावकर्म ॥४॥
इस प्रकार कर्मनिक्षेपके ये दस प्रकार हैं।
अब कर्मनयविभाषणताका अधिकार है-कौन नय किन कर्मोको स्वीकार करता है ? ॥५॥
ताप्रती 'इरियावथकम्मे' इति पाठः ।
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