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५, ३, २६. ) फासाणुओगद्दारे कम्मफासो
(२९ अंतराइयं दसणावरणीएण फुसिज्जदि ।३। अंतराइयं वेयणीएण फुसिज्जदि ।४। अंतराइयं मोहणीएण फुसिज्जदि।५। अंतराइयं आउएण फुसिज्जदि ।६। अंतराइयं णामेण फुसिज्जदि ।७। अंतराइयं गोदेण फुसिज्जदि ।८। एवं अंतराइयस्स अट्ठ भंगा । एदेसु पुव्विल्लभंगेसु पक्खित्तेसु चउसठ्ठी भंगा होति । ६४ । संपहि एत्थ एगादिएगुत्तरसत्तगच्छसंकलणमेत्तपुणरुत्तभंगसु अवणिदेसु अपुणरुत्तछत्तीसभंगा ।३६।
किया जाता है ।२। अन्तराय दर्शनावरणीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ३ । अन्तराय वेदनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ४ । अन्तराय मोहनीय द्वारा स्पर्श किया जाता है । ५ । अन्तराय आयु द्वारा स्पर्श किया जाता है ।६। अन्तराय नाम द्वारा स्पर्श किया जाता है । ७ । अन्तराय गोत्र द्वारा स्पर्श किया जाता है । ८। इस प्रकार अन्तराय कर्मके आठ भंग होते हैं। उन्हें पूर्वोक्त ५६ भंगोंमें मिलानेपर ६४ भंग होते हैं ।
अब यहां एकसे लेकर एकोत्तर सात गच्छके संकलन प्रमाण पुनरुक्त भंगोंके घटा देनेपर अपुनरुक्त छत्तीस भंग होते हैं । ३६।
विशेषार्थ- कर्मस्पर्श में न तो कर्मों का जीवके साथ होनेवाला स्पर्श लिया गया है, न कर्मोका उनके विस्रसोपचयोंके साथ होनेवाला स्पर्श लिया गया है, और न कर्मोका नोकर्मोक साथ होनेवाला स्पर्श लिया गया है। यहां केवल आठ कर्मोंका परस्परमें जो स्पर्श होता है उसीका ग्रहण किया गया है। कर्मस्पर्श का अर्थ है कर्मोंका परस्परमें होनेवाला स्पर्श । इस अर्थके अनुसार कर्मस्पर्शके कुल भंग ६४ होते हैं। उनमें से पुनरुक्त २८ भंग घटा देनेपर अपुनरुक्त भंग कुल ३६ रहते हैं । खुलासा इस प्रकार है
क्र.सं.
संयोग
पुनरुक्त या अपुनरुक्त
क्र.सं.
संयोग
पुनरुक्त या अपुनरुक्त
अपुनरुक्त
rr m3 ur 900०.
ज्ञानावरण + ज्ञानावरण ज्ञानावरण + दर्शनावरण ज्ञानावरण + वेदनीय ज्ञानावरण + मोहनीय ज्ञानावरण + आय ज्ञानावरण + नाम ज्ञानावरण + गोत्र ज्ञानावरण + अन्तराय दर्शनावरण + दर्शनावरण दर्शनावरण + ज्ञानावरण दर्शनावरण + वेदनीय दर्शनावरण + मोहनीय
दर्शनावरण + आयु दर्शनावरण + नाम दर्शनावरण + गोत्र दर्शनावरण + अन्तराय वेदनीय + वेदनीय वेदनीय + ज्ञानावरण वेदनीय + दर्शनावरण वेदनीय + मोहनीय वेदनीय + आयु वेदनीय + नाम वेदनीय + गोत्र वेदनीय + अन्तराय
पु. (३ से) " (११से)
२१
पु. ।
२३ २४
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