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५, ३, १२.) फासाणुओगद्दारे दव्वफासो
( ११ कधमत्र स्पृश्य-स्पर्शकभावः ? ण, बुद्धीए एयत्तमावण्णेसु तदविरोहादो सत्त-पमेयतादीहि सव्वस्त सव्वविसयफोसणुवलंभादो वा।
जो सो दवफासो णाम ॥ ११ ।। एवं पुव्वपइज्जासंभालणवयणं। एदस्स अत्थो वच्चदे त्ति वा जाणावणमेदं वुच्चदे।
जं दव्वं दवेण फसदि सो सम्वो दववफासो णाम ।। १२॥
तं जहा-परमाणुपोग्गलो सेसपोग्गलदव्वेण फुसदि; पोग्गलदव्वभावेण परमाणुपोग्गलस्स सेसपोग्गलेहि सह एयत्तुवलंभादो। एयपोग्गलदव्वस्स सेसपोग्गलदव्वेहि संजोगो समवाओ वा दववफासो गामा अधवा जीवदव्वस्स पोग्गलदव्वस्स य जो एयत्तण संबंधो सो दव्वफासो णाम। जीव-पोग्गलदव्वाणममुत्त-मुत्ताणं कधमेयत्तेण संबंधो? ण एस दोसो, संसारावत्थाए जीवाणममुत्तत्ताभावादो। जदि संसारावत्थाए मुत्तो जीवो,
विरोध नहीं आता, अथवा सत्त्व और प्रमेयत्व आदिकी अपेक्षा सबका सर्वविषयक स्पर्शन पाया जाता है।
विशेषार्थ- स्थापनाके दो भेद हैं सद्भावस्थापना और असद्भावस्थापना । तदाकार स्थापनाको सद्भावस्थापना कहते हैं और अतदाकार स्थापनाको असद्भावस्थापना कहते हैं। जिनमें स्थापना की जाती है वे पदार्थ जुदे होते हैं और जिनकी स्थापना की जाती है वे पदार्थ जुदे होते हैं। प्रकृत में स्पर्शका विचार चला है, इसलिये प्रश्न है कि स्पर्शसे भिन्न पदार्थों में स्पर्श शब्दका व्यवहार कैसे किया जा सकेगा। समाधान यह है कि बुद्धिसे अन्य पदार्थमें स्पर्शका आरोप कर लिया जाता है जिससे उसमें 'यह स्पर्श' है ऐसा व्यवहार बन जाता है। प्रकृतमें इसी दृष्टिसे स्पर्शस्थापनाके दो भेद और उनके विविध उदाहरण उपस्थित किये गये हैं।
अब द्रव्यस्पर्शका अधिकार है ॥११॥
यह वचन पूर्व प्रतिज्ञाकी सम्हाल करता है । अथवा आगे 'इसका अर्थ कहते हैं' यह जतलाने के लिये यह वचन कहा है।
जो एक द्रव्य दूसरे द्रव्यसे स्पर्शको प्राप्त होता है वह सब द्रव्यस्पर्श है ॥ १२ ॥
यथा- परमाणु पुद्गल शेष पुद्गल द्रव्य के साथ स्पर्शको प्राप्त होता है, क्योंकि पुद्गल द्रव्यरूपसे परमाणु पुद्गलका शेष पुद्गलोंके साथ एकत्व पाया जाता है। एक पुद्गल द्रव्यका शेष पुद्गल द्रव्योंके साथ जो संयोग या समवाय सम्बन्ध होता है वह द्रव्यस्पर्श कहलाता है। अथवा जीव द्रव्य और पुद्गल द्रव्यका जो एकमेक सम्बन्ध होता है वह द्रव्यस्पर्श कहलाता है।
शंका- जीव द्रव्य अमूर्त है और पुद्गल द्रव्य मूर्त है। इनका एकमेक सम्बन्ध कैसे हो सकता है ?
समाधान- यह कोई दोष नहीं है, क्योंकि संसार अवस्थामें जीवोंमें अमूर्तपना नहीं पाया जाता।
शंका- यदि संसार अवस्था में जीव मूर्त है तो मुक्त होनेपर वह अमूर्तपनेको कैसे प्राप्त हो सकता है ?
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