Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
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समय कोई भी दो, किसी समय कोई भी तीन गुणस्थान में हों । इस प्रकार यावत् आठों गुणस्थानों में किसी समय जीव हों तथा उनमें भी किसी समय एक जीव हो, किसी समय अनेक जीव' हों और यदि किसी समय न हों तो आठ में से किसी भी गुणस्थान में एक या अनेक की अपेक्षा जीव न हों । "
इस प्रकार से गुणस्थानों की सत्पदप्ररूपणा करने के पश्चात अब अनियतकाल - भावी पूर्वोक्त सासादन आदि आठ गुणस्थानों के एकद्विकादि के संयोग से सम्भव भेदों को बताने के लिये करण-सूत्र गाथा कहते हैं कि
इगदुगजोगाईणं ठविद्यमहो एगणेग इइ जुयलं । इगिजोगाउ दुदु गुणा गुणियविमिस्सा भवे भंगा ॥७॥ शब्दार्थ - इगदुगजोगाईणं-- एक, द्विक आदि संयोगी भंगों के, ठवियमहो — नीचे स्थापित कर एगणेग - एक अनेक, इइ – इनका, जुयलं युगल, इगि – एक, जोगाउ - संयोग से, दुदु गुणा -- द्विगुण, गुणियविभिस्सा – गुणित को मिलाने पर, भवे—होते हैं, भंगा-भंग |
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गाथार्थ - एक, द्विक आदि संयोगी भंगों के नीचे एक अनेक का युगल स्थापित कर एक संयोग से लेकर द्विगुण कर दो मिलाओ और गुणित को मिलाने पर कुल भंग होते हैं ।
विशेषार्थ - गाथा में एक, द्विक आदि के संयोग से बनने वाले भंगों की विधि बतलाई है कि
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एक, दो, तीन आदि प्रत्येक संयोग के नीचे एक और अनेकरूप युगल का सूचक अंक दो (२) रखना चाहिये । तत्पश्चात् जिस पद के संयोग की भंग संख्या निकालना हो, उस पद के संयोग के नीचे रहे हुए युगल के सूचक दो के अंक का उससे पूर्व के पद के संयोग की भंग
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अनेक जीवों की निश्चित संख्या का उल्लेख आगे किया जाएगा | किसी गुणस्थान पर जीव नहीं होते हैं तो कितने काल तक नहीं होते हैं ? इसका विरहकाल आगे कहा जाएगा ।
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