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पंचसंग्रह दूसरी आदि नरकपृथ्वियों में जाता नहीं है तथा उसी प्रकार दूसरी आदि नरकपृथ्वियों में से सम्यक्त्व सहित तिथंच अथवा मनुष्य में आता नहीं है। जिससे मरणापेक्षा अधोलोक की स्पर्शना बढ़ती नहीं है। इसी तरह कालधर्म प्राप्त कर सम्यक्त्व सहित अनुत्तर विमानवासी देवभव में जाने अथवा वहाँ से च्यवकर मनुष्य भव में आने पर सर्वोत्कृष्ट सात राजू की स्पर्शना सम्भव है, इससे अधिक नहीं । इस प्रकार कालधर्म प्राप्त कर सम्यक्त्व सहित अन्य गति में जाते एवं आते सात राजू की स्पर्शना संभव है। सामान्य रूप से तो अविरतसम्यग्दृष्टि के भी मिश्रदृष्टि की तरह आठ राजू की स्पर्शना समझनी चाहिये, अन्य प्रकार से नहीं। . अन्य कितने ही आचार्य अविरतसम्यग्दृष्टि जीव के उत्कृष्ट से नौ राजू की स्पर्शना मानते हैं कि क्षायिक सम्यग्दृष्टि जीव क्षायिक सम्यक्त्व को लेकर तीसरी नरकपृथ्वी में भी जाते हैं। जिससे अनुत्तर विमानवासी देवभव में जाते अथवा वहाँ से च्यवकर मनुष्यभव में आते समय सात राजू की स्पर्शना होती है और तीसरी नरकपृथ्वी में उत्पन्न होने अथवा वहाँ से च्यवकर मनुष्यभव में आने पर दो राजू की स्पर्शना होती है, इस प्रकार सामान्यतया अविरतसम्यग्दृष्टि जीव के नौ राजू की स्पर्शना सम्भव है। ___व्याख्याप्रज्ञप्ति (भगवती) सूत्र आदि के मतानुसार तो चतुर्थ गुणस्थान वाले जीवों के बारह राज की स्पर्शना भी सम्भव है । वह इस प्रकार जानना चाहिये कि अनुत्तर देवभव में जाते अथवा वहाँ से च्यवकर मनुष्यभव में आने पर सात राजू की स्पर्शना होती है तथा बद्घायुष्क अविरतसम्यग्दृष्टि तिर्यंच अथवा मनुष्य क्षायोपशमिक सम्यक्त्व लेकर छठी नरकपृथ्वी में नारकरूप से उत्पन्न हो सकता है अथवा क्षायोपशमिक सम्यक्त्वयुक्त नारक वहाँ से च्यवकर मनुष्यभव में उत्पन्न होता है। इससे अविरतसम्यग्दृष्टि छठी नरकपृथ्वी में जाते अथवा वहाँ से आते हुए पाँच राजू को स्पर्शता है। इस तरह
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