Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह ___ अब देशविरत आदि शेष गुणस्थानों की स्पर्शना का विचार करते हैं---
उपशमक यानि उपशमश्रेणि पर आरूढ़ अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादरसंपराय और सूक्ष्मसंपराय गुणस्थानवी जीव और उप शांत यानि उपशांतमोहगुणस्थानवी जीव एवं अप्रमत्तविरत और गाथा के दूसरे पद के अन्त में उल्लिखित 'य-च' शब्द से अप्रमत्तभावाभिमुख प्रमत्तसंयत मुनि, इन सबके ऋजुगति द्वारा सर्वार्थसिद्धविमान में उत्पन्न होने पर सात राजू की स्पर्शना सम्भव है।
क्षपकश्रेणि पर आरूढ़ अपूर्वकरणादि गुणस्थानवी जीव मरण को प्राप्त नहीं करते हैं और न मारणान्तिकसमुद्घात ही प्रारम्भ करते हैं, इसलिये उनके लोक के असंख्यातवें भाग मात्र स्पर्शना घटित होती है, अधिक नहीं। इसी कारण क्षीणमोहगुणस्थान की लोक के असंख्यातवें भाग मात्र स्पर्शना बताई है। .. प्रश्न-जब मनुष्यभव की आयु का क्षय हो और परभव की आयु का उदय हो तब परलोकगमन सम्भव है, उस समय अविरतपना होता है, उपशम आदि भाव नहीं होते हैं। क्योंकि प्रमत्तादि भाव मनुष्यभव के अन्त समय तक ही होते हैं। परभवायु के प्रथम समय में तो अविरतसम्यग्दृष्टिगुणस्थान होता है, इसलिये सर्वार्थसिद्ध महाविमान में जाते हुए चतुर्थ गुणस्थान की सात राजू की स्पर्शना सम्भव है, अपूर्वकरणादि की सम्भव नहीं है । तो फिर यहाँ अपूर्वकरणादि की सात राजू की स्पर्शना क्यों बताई है ?
उत्तर-इसमें कोई. दोष नहीं है। परभव में जाते गति दो प्रकार से होती है- (१) कंदुकगति, (२) इल्लिकागति । इनमें से कंदुक (गेंद) की तरह जो गति होती है, उसे कंदुकगति कहते हैं। यानि जैसे गेंद अपने समस्त प्रदेशों का पिंड करके पूर्व के स्थल के साथ सम्बन्ध रखे बिना ऊपर जाती है, उसी तरह कोई जीव भी परभव की आयु का जब उदय होता है, तब परलोक में जाते हुए अपने प्रदेशों को एकत्रित
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