Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट : १
सम्माई तिनि गुणा कमसो सगचोद्दपन्नरदिणाणि । छम्मास अजोगित्तं न कोवि पडिवज्जए सययं ॥ ६३ ॥ सम्माइ चउसु तिय चउ उवसममुवसंतयाण चउ पंच । चउ खोणअपुव्वाणं तिन्नि उ भावावसेसाणं ||६४ ॥ थोवा गब्भय मणुया तत्तो इत्थीओ तिघणगुणियाओ । बायर तेउक्काया तासिमसंखेज्ज पज्जत्ता ||६५|| तत्तोत्तरदेवा तत्तो संखेज्ज जाणओ कप्पो । तत्तो असंखगुणिया सत्तम छट्ठी सहस्सारो ॥६६॥ सुक्कंमि पंचमाए लंतय चोत्थीए बंभ तच्चाए । माहिंद सणकुमारे दोच्चाए मुच्छिमा मया ॥६७॥ ईसाणे सव्वत्थवि बत्तीसगुणाओ होंति देवीओ । संखेज्जा सोहम्मे तओ असखा भवणवासी ||६८|| रयणप्प भया खहयरपणिदि संखेज्ज तत्तिरिक्खीओ । सव्वत्थ तओ थलयर जलयर वण जोइसा चेवं ॥ ६६ ॥ तत्तो नपुं सहयर संखेज्जा थलयर जलयर नपुंसा । चरिदि तओ पणबितिइंदियपज्जत्त किंचि (च) हिया || ७० || असंखा पण किंचि (च ) हिय सेस कमसो अपज्ज उभयओ । पंचेंदिय विसेसहिया चउतिबेइंदिया तत्तो ॥ ७१ ॥ पज्जत्तबायर पत्तेयतरू असंखेज्ज इति निगोयाओ । पुढवी आऊ वाउ बायर अपज्जत्ततेउ तओ ॥ ७२ ॥ पुढवीजलवाउतेउ तो सुहुमा ।
बादरतरूनिगोया
तत्तो विसेस अहिया पुढवीजलपवणकाया उ ॥७३॥ संखेज्ज सुहुम पज्जत्त ते किंचि (च) हिय भूजलसमीरा । तत्तो असंवगुणिया सुमन गोया संखेज्जगुणा तत्तो पज्जत्ताणतया पडिवडियसम्म सिद्धा वण बायर जीव
अपज्जत्ता ॥ ७४॥
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तओऽभव्वा ।
पज्जत्ता ॥७५॥
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