Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 257
________________ २२० पंचसंग्रह : २ सुमपुढविकाइए णं भंते ! सुहुमपुढविकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं असंखिज्जं कालं असं - खिज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखिज्जा लोगा । एवं सुहुमआउकाइए-सुहुमते उकाइए-सुहुमवाउकाइए-सुहुमवणस्सइकाइए । प्रभो ! सूक्ष्म पृथ्वीकाय रूप से उत्पन्न होते सूक्ष्म पृथ्वीकाय का काय स्थिति काल कितना है । गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से कालापेक्षा असंख्यात उत्सर्पिणी - अवसर्पिणी और क्षेत्रापेक्षा असंख्यात लोकप्रमाण जानना चाहिये । इसी प्रकार सूक्ष्म अप्काय, सूक्ष्म तेजस्काय, सूक्ष्म वायुकाय और सूक्ष्म वनस्पतिकाय के लिए भी समझना चाहिये । बायरे णं भंते ! बायरे त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं असंखिज्जं कालं असंखिज्जाओ उस्सप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खित्तओ अंगुलस्स असंखिज्जइभागं । बायरवणस्सइकाइए पुच्छा । J गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त उक्कोसेणं असंखिज्जाओ उसप्पि - णीओसप्पिणीओ कालओ, खित्तओ अंगुलस्स असंखिज्जइभागं । भदन्त ! बारम्बार बादर रूप से उत्पन्न होते बादर जीवों का काय स्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्यं से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात उत्सर्पिणी और अवसर्पिणी काल है तथा क्षेत्र से अंगुल के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल है । भगवन् ! बादर वनस्पतिकाय रूप से उत्पन्न होते बादर वनस्पति जीव का कायस्थिति काल कितना है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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