Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 265
________________ २२८ पंचसंग्रह : २ तमप्पभापुढविनरेइया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एग समय, उक्कोसेणं चत्तारि मासा । अहेसत्तमपुढविनेरइया णं भंते केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जहण्णणं एगं समयं, उक्कोसेणं छम्मासा । सम्मूच्छिम मनुष्य संमुच्छिममणुस्सा णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं एग समयं, उक्कोसेणं चउवीसं मुहुत्ता । विकलेन्द्रिय, संमूच्छिम पंचेन्द्रिय तिर्यच बेइंदिया णं भंते ! केवइयं कालं विरहिया उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त । एवं तेइंदियचउरिदियसमुच्छिमपंचिदियतिरिवखजोणियाण य पत्त यं जहन्नेणं एगं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्त । -प्रज्ञापनासूत्र, व्युत्क्रांतिपद Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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