Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 259
________________ पंचसंग्रह : २ भगवन् ! बादर पृथ्वी कायपने में बादर पृथ्वीकाय का स्वकायस्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है । इसी प्रकार बादर अप्काय का भी तथा यावत् बादर तेजस्काय, बादर वायुकाय का भी जानना । प्रभो ! प्रत्येक बादर वनस्पतिकाय का प्रत्येक बादर वनस्पतिकायपने का कार्यस्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम प्रमाण है । बायरनिगोए णं भंते ! बायरनिगोएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेण सर्त्तारं सागरोवमकोडाकोडीओ | २२२ भगवन् ! बादर निगोदपने में बादर निगोद का कितना काल है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट सत्तर कोडाकोडी सागरोपम है । सुमे णं भंते सुमेत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं असंखेज्जं कालं, असंखेज्जाओ उसप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ असंखेज्जा लोगा । भगवन् ! सूक्ष्मपने से उत्पन्न होते सूक्ष्म का कायस्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट असंख्यात उत्सर्पिणीअवसर्पिणी काल है एवं क्षेत्र से असंख्यात लोकप्रमाण काल हैं । निगोए णं भंते ! निगोएत्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं अनंतं कालं अणंताओ उसप्पिणीओसप्पिणीओ कालओ, खेत्तओ अड्ढाइज्जा पोग्गल परि यहां । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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