Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंच संग्रह : २ किंचि (च) हिया सामन्ना एए उ असंख वण अपज्जत्ता। एए सामन्नेर्ण विसेसअहिया अपज्जत्ता ॥७६॥ सुहमा वणा असंखा विसेसअहिया इमे उ सामन्ना । सुहमवणा संखेज्जा पज्जत्ता सव्व किंचि (च) हिया ॥७७॥ पज्जत्तापज्जत्तां सुहमा किंचि (च) हिया भव्वसिद्धीया। तत्तो बायर सुहमा निगोय वणस्सइजिया तत्तो ॥७८।। एगिदिया तिरिक्खा चउगइमिच्छा य अविरइजुया य। सकसाया छउमत्था सजोगसंसारि सव्वेवि ॥७६।। उवसंतखवगजोगी अपमत्तपमत्त देससासाणा। मीसाविरया चउ चउ जहुत्तरं संखसखगुणा ॥८॥ उक्कोसपए संता मिच्छा तिसु गईसु होतसखगुणा। तिरिए संणतगुणिया सन्निसु मणुएसु संखगुणा ।।८१॥ एगिदियसुहुमियरा सन्नियर पणिदिया सबितिचऊ। पज्जत्तापज्जत्ता भएणं चोदसग्गामा ॥८२।। मिच्छा सासणमिस्सा अविरय देसा पमंत्त अपमत्ता। अपुव्व बायर सुहुमोवसंतखीणा सजोगियरा ॥८३॥ तेरस विबंधगा ते अट्ठविहं बंधियव्वयं कम्मं । मूलुत्तरमेयं ते साहिमो ते निसामेह ॥४॥
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