Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 252
________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट २१५ भदन्त ! पृथ्वोकाय जीव का पृथ्वीकाय रूप में कितना काल बीतता है ? गौतम ! कालापेक्षा जघन्य से अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट से असंख्यात उत्सर्पिणी-अवसर्पिणी प्रमाण असंख्यात काल व्यतीत होता है । क्षेत्रापेक्षा असंख्यात लोकाकाश प्रदेश प्रमाण है। ___ इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय और वायुकाय के लिये समझना चाहिये। भगवन् ! वनस्पतिकाय का वनस्पतिकाय के रूप में कालापेक्षा कितना काल है ? गौतम ! जघन्य से अन्तमुहर्त और उत्कृष्ट से अनन्त उत्सपिणीअवसर्पिणी रूप अनन्त काल है। क्षेत्रापेक्षा अनन्त लोकाकाश प्रदेशप्रमाण अथवा असंख्यात क्षेत्रपुद्गलपरावर्तन प्रमाण काल है। वे पुद्गलपरावर्तन आवलिका के असंख्यातवें भागगत समय प्रमाण जानना चाहिये। तसकाइएणं भंते ! तसकाइए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्त, उक्कोसेणं दोसागरोवमसहस्साई संखेज्जवाससहियाई। पचिदिएणं भंते। पंचेंदिए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्त, उक्कोसेणं सागरोवमसहस्सं साइ रेगं । भगवन् ! बसकाय जीव त्रसकाय रूप में कितने काल तक होते हैं ? गौतम ! जघन्य मे अन्तमुहूर्त और उत्कृष्ट से संख्यात वर्ष अधिक दो हजार सागरोपम पर्यन्त होते हैं। भगवन् ! पंचेन्द्रिय जीव पंचेन्द्रिय रूप में कितने काल तक रहते Jain Education International For Private & Personal Use Onl www.jainelibrary.org

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