Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 254
________________ बंधक-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट २१७ गौतम ! जघन्य से अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट से साधिक शतपृथक्त्व सागरोपम काल है। बायरेगिंदियपज्जत्तए णं भंते ! बायरेगिंदयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहण्णणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई । भगवन् ! बारंबार बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय के रूप में उत्पन्न होते बादर पर्याप्त एकेन्द्रिय का कायस्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष का काल है। बायरपुढविकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बायर पुढविकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई। एवं आउकाएवि। बायर तेउकाइयपज्जत्तए णं भंते ! बायरतेउकाइयपज्जत्तए त्ति कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं राइंदियाई । वाउकाइए पत्तेयसरीरबायरवणप्फइकाइए य पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं अंतोमुहुत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं वाससहस्साई। भदन्त ! बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय का बादर पर्याप्त पृथ्वीकाय के रूप में कायस्थिति काल कितना है ? गौतम ! जघन्य अन्तर्मुहर्त और उत्कृष्ट संख्यात हजार वर्ष का होता है। इसी प्रकार अप्काय के विषय में भी जानना चाहिये। प्रभो ! बादर पर्याप्त तेजस्काय का बादर तेजस्काय के रूप में रहने का कितना काल है ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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