Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 236
________________ नारक एवं चतुर्विध देव संख्यानिरूपक गोम्मटसार जीवकांडगत पाठ नरकगति सामण्णा रइया, घणअंगुलविदियमूलगुणसेढी । विदियादि बारदसअड, छत्तिदुणिजपदहिदा सेढी ॥१५३॥ हेद्विमछप्पुढवीणं, रासि विहीणो दु सवरासी दु । पढमावणिम्हि रासी रइयाणं तु णिद्दिट्ठो ॥१५४॥ देवगति तिण्णिसयजोययाणं, वेसदछप्पण्णअंगुलाणं च । कदिहदपदरं वेंतर, जोइसियाणं च परिमाणं ॥१६०।। घणअंगुलपढमपदं, तदियपदं सेढिसंगुणं कमसो । भवणे सोहम्मदुगे, देवाणं होदि परिमाणं ॥१६१।। तत्तो एगारणवसगपणचउणियमूलभाजिदा सेढी । पल्लासंखेज्ज दिमा पत्तेयं आणदादिसुरा ॥१६२॥ तिगुणा सत्तगुणा वा, सव्वट्ठा माणुसीपमाणादो। सामण्णदेवरासी जोइसियादो विसेसाहिया ॥१६३॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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