Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 244
________________ बंधक - प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट. " सुमो य होइ कालो तत्तो सुहुमयरं हवइ खेत्तं । अंगुलसेढीमेत्ते उसप्पिणीओ असंखेज्जा ॥ " - उत्कृष्ट पद में जो मनुष्य हैं, उनमें एक (मनुष्य) रूप का प्रक्षेप करने पर उन मनुष्यों के द्वारा संपूर्ण सूचिश्रेणि का अपहार होता है । उस सूचि - श्रेणि का काल और क्षेत्र द्वारा अपहार का विचार इस प्रकार है काल से असंख्याती उत्सर्पिणी अवसर्पिणी के समय प्रमाण है और क्षेत्रापेक्षा सूचिणि के अंगुल प्रमाण क्षेत्र में वर्तमान आकाशप्रदेशों के प्रथम वर्गमूल को तीसरे वर्गमूल द्वारा गुणा करना चाहिये। जिसका अर्थ यह हुआ - २०७ उस श्रेणि के अंगुल प्रमाण क्षेत्रगत प्रदेशराशि के प्रथम वर्गमूल में प्राप्त प्रदेशराशि को तृतीय वर्गमूलगत प्रदेशराशि से गुणाकार करने पर जो प्रदेशराशि हो, ऐसे - ऐसे एक-एक खंड का और दूसरी ओर एक-एक मनुष्य का अपहार किया जाये, यानि ऐसे-ऐसे सूचि‍ णि के एक-एक खंड को एक-एक मनुष्य ग्रहण करे तब यदि एक मनुष्य अधिक हो तो संपूर्ण श्रोणि को ग्रहण कर सकता है । सारांश यह हुआ कि कालतः असंख्यात उत्सर्पिणो, अवसर्पिणी के जितने समय हैं, उतने उत्कृष्टपद में मनुष्य हैं और क्षेत्रतः अंगुल प्रमाण क्षेत्र के पहले मूल को तीसरे मूल के साथ गुणा करने पर प्राप्त आकाशप्रदेश प्रमाण सूचिणि के जितने खंड हों, उनमें से एक न्यून करने पर उत्कृष्ट से मनुष्यों की संख्या का प्रमाण होता है । प्रश्न - ऐसे-ऐसे खंडों द्वारा एक श्रेणि का अपहार करते असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल कैसे होता है ? उत्तर - क्षेत्र के अत्यन्त सूक्ष्म होने से उतना काल होता है । जैसा कि कहा है सुमो य होइ कालो तत्तो सुहुमयरं हवइ 'खेत्तं । उसप्पिणीओ अंगुलीमे असंखेज्जा | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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