Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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१८६
बंधक-प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट : १
पोग्गलपरियट्टो इह दव्वाइ चउव्विहो मुणेयव्वो । एक्केक्को पुण दुविहो बायरसुहुमत्तभेएणं ॥३७॥ संसारंमि अडतो जाव य कालेण फुसिय सव्वाणू । ईग्र जीवु मुयइ बायर अन्नयरतणुट्ठिओ सुहुमो ॥३८॥ लोगस्स पएसेसु अणंतरपरपराविभत्तीहिं। खेत्तंमि बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ।।३।। उस्सप्पिणिसमएसु अणंतरपरंपराविभत्तीहिं । कालम्मि बायरो सो सुहुमो उ अणंतरमयस्स ॥४०॥ अणुभागट्टाणेसु
अणंतरपरपराविभत्तीहिं। भावमि बायरो सो सुहुमो सव्वेसुणुक्कमसो ॥४१॥ आवलियाणं छक्कं समयादारभ सासणो होइ । मीसुवसम अतमुहू खाइयदिट्ठी अणतद्धा ॥४२॥ वेयग अविरयसम्मो तेत्तीसयराइं साइरेगाई। अतमुहुत्ताओ पुव्वकोडी देसो उ देसूणा ॥४३।। समयाओ अतमुहू पमत्त अपमत्तयं भयंति मुणी। देसूण पुनकोडि अन्नोन्नं चिट्ठहि भयंता ॥४४॥ समयाओ अंतमुहू अपूव्वकरण उ जाव उवसतो। खीणाजोगीणतो देसस्सव जोगिणो कालो ॥४५॥ एगिदियाणणंता दोणि सहस्सा तसाण कायठिई। अयराण इगपणिदिसु नरतिरियाणं सगट्ठ भवा ॥४६।। पुवकोडिपुहुत्त पल्लतियं तिरिनराण कालेणं । नाणाइगपज्जत्त मणुणपल्लसखस अंतमुहू ॥४७।। पुरिसत्त' सन्नित्त' सयपुहुत्त तु होइ अयराणं । थी पलियसयपुहुत्त, नपुसगत्त अणतद्धा ।।४८।। बायरपज्जेगिंदिय विगलाण य वाससहस्स संखेज्जा । अपज्जत सुहुमसाहारणाण
पत्तगमंतमुहू ॥४६।।
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