Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 225
________________ १५८ पंचसंग्रह : २ खवगा खीणाजोगी एगाइ जाव होंति अट्ठसयं । अद्धाए सयपुहुत्त कोडिपुहुत्तं संजोगीओ ॥२४॥ अपज्जत्ता दोन्नवि सुहुमा एगिदिया जए सब्वे ।। सेसा य असंखेज्जा बायरपवणा असखेसु ॥२५।। सासायणाइ सव्वे लोयस्स असंखयम्मि भागम्मि । मिच्छा उ सव्वलोए होइ सजोगी वि समुग्घाए ॥२६॥ वेयण - कसाय - मारण - वेउव्विय-तेउ-हार-केवलिया। सग पण चउ तिन्नि कमा मणुसुरनेर इयतिरियाण । २७॥ पंचेन्दियतिरियाणं देवाण व होति पंच सन्नीणं । वेउव्वियवाऊणं पढमा चउरो समुग्घाया ॥२८॥ चउदसविहावि जीवा समुग्घाएणं फुसंति सव्वजगं । रिउसेढीए व केई एवं मिच्छा सजोगी या ॥६॥ मीसा अजया अड अड बारस सासायणा छ देसजई । सग सेसा उ फुसंति रज्जू खीणा असंखसं ॥३०॥ सहसारतियदेवा नारयनेहेण जति तइय व । निज्जति अच्चयं जा अच् यदेवेण इयरसुरा ॥३१॥ छट्ठाए नेरइओ सासणभावेण एइ तिरिमणुए। लोगंतनिक्कुडेसु जतिऽन्ने सासणगुणत्था ॥३२॥ उवसामगउवसंता सव्वट्ठ अप्पमत्तविरया य । गच्छन्ति रिउगईए पुदेसजया उ बारसमे ॥३३॥ सत्तण्हमपज्जाणं अंतमुहुत्त दुहावि सुहुमाणं । सेसाणंपि जहन्ना भवठिई होइ एमेव ॥३४॥ बावीससहस्साइ बारस वासाइ अउणपन्नदिणा। छम्मास पुवकोडी तेत्तीसयराइ उक्कोसा ॥३५॥ होइ अणाइ अणंतो अणाइ संतो य साइसंतो य । देसूणपोग्गलद्ध अंतमुहुत्तं चरिममिच्छो ॥३६॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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