Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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परिशिष्ट (१)
बंधक-प्ररूपणा अधिकार की मूल गाथाएँ
चउदसविहा वि जीवा विबंधगा तेसिमंतिमो भेओ। चोद्दसहा सव्वे वि हु किमाइसंताइपयनेया ॥१॥ किं जीवा ? उवसमाइएहिं भावेहि संजुयं दव्वं । कस्स ? सरूवस्स पहू केणंति ? न केणइ कया उ ॥२॥ कत्थ ? सरीरे लोए व हुंति केवचिर ? सव्व कालं तु। कई भावजुया जीवा ? दुग-तिग-चउ-पंचमीसेहिं ॥३॥ सुरनेरइया तिसु तिसु वाउपणिदीतिरक्ख चउ चउसु । मणुया पंचसु सेसा तिसु तणुसु अविग्गहा सिद्धा ॥४॥ पुढवाई चउ चउहा साहारवणंपि सतयं सययं । पत्तय पज्जपज्जा दुविहा सेसा उ उववन्ना ॥५॥ मिच्छा अविरयदेसा पमत्त अपमत्तया सजोगी य । सव्वद्ध इयरगुणा नाणा जीवेसु वि न होंति ॥६॥ इगदुगजोगाईणं ठवियमहो एगणेग इइ जुयलं । इगिजोगाउ दुदु गुणा गुणियविमिस्सा भवे भंगा ॥७॥ अहवा एक्कपईया दो भंगा इगिबहुत्तसन्ना जे । ते च्चिय पयवुड्ढीए तिगुणा दुगसजुया भंगा ॥८॥ साहारणाण भेया चउरो अणंता असंखया सेसा । मिच्छाणता चउरो पलियासखस सेस संखेज्जा ।।६।। पत्तेयपज्जवणकाइयाउ पयरं हरति लोगस्स। अंगुल - असंखभागेण भाइयं भूदगतणू य ॥१०॥
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