Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक प्ररूपणा अधिकार : परिशिष्ट : १
१८७ आवलिवग्गो अन्तरावलीय गुणिओ हु बायरा तेऊ। वाऊ य लोगसखं सेसतिगमसांखया लोगा ॥११॥ पजत्तापजत्ता बि-ति-चउ असन्निणो अवहरंति । अंगुल - सखासंखप्पएसभइयं पुढो पयरं ॥१२॥ सन्नी चउसु गईसु पढमाए असखसेढि नेरइया । सेढिअसंखेज्जसो सेसासु जहोत्तरं तह य ॥१३॥ संखेज्जजोयणाणं सूइपएसेहिं भाइओ पयरो। वतरसुरेहिं हीरइ एवं एकेक्कभेए णं ॥१४॥ छप्पनदोसयंगुल सूइपएसिं भाइओ पयरो। जोइसिएहिं हीरइ सट्ठाणे त्थीय संखगुणा ॥१५॥ असखसेढिखपएसतुल्लया पढम दुइय कप्पेसु । सेढि असखंसमा उरि तु जहोत्तरं तह य ।।१६।। सेढिएक्केक्कपएसरइय सूईणमंगुलप्पभियं । घम्माए भवणसोहम्मयाणमाणं इमं होइ ॥१७॥ छप्पन्नदोसयंगुल भूओ भूओ विगब्भ मूलतिंग । गुणिया जहुत्तरत्था रासीओ कमेण सूइओ ॥१८॥ अहवंगुलप्पएसा समूलगुणिया उ नेरइयसूई । पढपदुइयापयाइं समूलगुणियाइं इयराण ॥१६॥ अंगुलमूलासंखियभागप्पमिया उ होंति सेढीओ। उत्तरविउव्वियाणं तिरियाण य सन्निपज्जाणं ॥२०॥ उक्कोसपए मणुया सेढी रूवाहिया अवहरंति । तइयमूलाहएहिं
अंगुलमूलप्पएसेहिं ॥२१॥ सासायणाइचउरो होति अंसखा अणतया मिच्छा। कोडिसहस्सपुहुत्तं पमत्तइयरे उ थोवयरा ॥२२॥ एगाइ चउपण्णा समगं उवसामगा य उवसता। अद्ध पडुच्च सेढीए होंति सब्वेवि संखेज्जा ॥२३॥
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