Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २ इन चौदह जीवस्थानों का पहले विस्तार से विवेचन किया जा चुका है। अतः तदनुसार इनका स्वरूप जान लेना चाहिये । अब पूर्व में जो यह कहा था कि जीवस्थानों में अंतिम संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त भेद गुणस्थानों की अपेक्षा से चौदह प्रकार का होता है, अतः उन गुणस्थानों के नाम बतलाते हैं । गुणस्थानों के नाम मिच्छा सासणमिस्सा अविरयदेसा पमत्त अपमत्ता। अपुव्व बायर सुहमोवसंतखीणा सजोगियरा ॥३॥
शब्दार्थ-मिच्छा-मिथ्यात्व, सासण-सासादन, मिस्सा ---मिश्र, अविरय-अविरतसम्यग्दृष्टि, देसा-देशविरत, पमत्त-प्रमत्तविरत, अपमत्ता-अप्रमत्तविरत, अपुर-अपूर्वकरण, बायर-अनिवृत्तिबादर, सुहुमोवसंत-सूक्ष्मसंपराय और उपशांतमोह, खीणा-क्षीणमोह, सजोगियरा-सयोगि और इतर अयोगि ।
गाथार्थ-मिथ्यात्व, सासादन, मिश्र, अविरत, देश विरत, प्रमत्त, अप्रमत्त, अपूर्व, बादर, सूक्ष्म, उपशांत, क्षीण, सयोगि और इतरअयोगि ये चौदह गुणस्थानों के नाम हैं।
विशेषार्थ-गाथा में चौदह गुणस्थानों के नामों का संकेतमात्र किया है। जिनके नाम इस प्रकार हैं
(१) मिथ्यात्व, (२) सासादनसम्यग्दृष्टि, (३) मिश्रदृष्टि, (४) अविरतसम्यग्दृष्टि, (५) देशविरत, (६) प्रमत्तसंयत, (७) अप्रमत्तसंयत, (८) अपूर्वकरण, (६) अनिवृत्तिबादरसंपराय. (१०) सूक्ष्मसंपराय, (११) उपशांतमोह, (१२) क्षीणमोह, (१३) सयोगिकेवली और (१४) अयोगिकेवली । प्रत्येक के साथ गुणस्थान शब्द जोड़ने से इनका पूरा नाम हो जाता है। यथा-मिथ्यात्वगुणस्थान, सासादनसम्यग्दृष्टिगुणस्थान आदि । इनका स्वरूप पहले योगोपयोगमार्गणा अधिकार में विस्तार से बतलाया जा चुका है। अतएव यहाँ उनका पुनः वर्णन नहीं किया है।
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