Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ८२
१८३
सत्पदादि प्ररूपणाओं का विचार समाप्त होता है । अब पूर्व में जीवों के चौदह भेदों का वर्णन किया गया है। उन चौदह भेदों का नाम बतलाते हैं । जीवस्थानों के भेद और नाम
एगिदियसुहमियरा सन्नियर पणिदिया सदि-ति-चऊ। पज्जत्तापज्जत्ताभेएणं चोद्दसग्गांमा ॥२॥
शब्दार्थ-एगिदिय-एकेन्द्रिय, सहुमियरा-सूक्ष्म और इतर-बादर, सन्नियर--संज्ञी और इतर-असंज्ञी, पणदिया- पंचेन्द्रिय, सबितिचऊ-द्वि, त्रि चतुः-इन्द्रिय सहित, पज्जत्तापज्जत्ता-पर्याप्त-अपर्याप्त, भेएणं-भेद से, चोद्दसग्गामा-चौदह प्रकार ।
गाथार्थ- सूक्ष्म और बादर एकेन्द्रिय, संज्ञी और असंज्ञी पंचेन्द्रिय तथा द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चतुरिन्द्रिय सहित इन सातो के पर्याप्तअपर्याप्त के भेद से जीवों के चौदह प्रकार हैं।
विशेषार्थ-गाथा में चौदह जीवस्थानों के नाम बतलाये हैं। जिन्हें जीवग्राम भी कहते हैं। उन जीवस्थानों के नाम इस प्रकार हैं
सूक्ष्म नामकर्म के उदयवाले सूक्ष्म और बादर नामकर्म के उदय वाले बादर, इस तरह एकेन्द्रिय दो प्रकार हैं। अर्थात् सूक्ष्म एकेन्द्रिय और बादर एकेन्द्रिय ये एकेन्द्रिय के दो भेद हुए तथा 'सन्नियर पणिदिया' अर्थात् संज्ञी और असंज्ञी इस तरह पंचेन्द्रिय जीव दो प्रकार के हैं तथा 'सबितिचउ' अर्था। द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय, इस प्रकार कुल मिला कर जीवों के सात भेद होते हैं। ये प्रत्येक पर्याप्त एवं अपर्याप्त के भेद से दो-दो प्रकार के हैं अर्थात् ये पर्याप्त भी होते हैं और अपर्याप्त भी। अतएव पर्याप्त और अपर्याप्त की अपेक्षा सात-सात प्रकारों को मिलाने से जीवों के कुल चौदह भेद होते हैं। जो जीवस्थान, जीवग्राम अथवा भूतग्राम कहलाते हैं।
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