Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २ गाथार्थ-उपशमश्रेणि, उपशांतता, मनुष्यत्व, अनुत्तरदेवत्व और क्षपकश्रेणि इन सबको संख्यात समय पर्यंत प्राप्त करते हैं।
विशेषार्थ--उपशमणि, उपशांतता-उपशांतमोह गुणस्थान, पंचेन्द्रिय गर्भज मनुष्यत्व, अनुत्तर विमानों का देवपना और उपलक्षण से अप्रतिष्ठान-सातवीं नरकपृथ्वी के इन्द्रक नरकावास का नारकत्व तथा क्षपकणि इन सबको अनेक जीव निरन्तर प्राप्त करें तो जघन्य से समयमात्र प्राप्त करते हैं। एक या अनेक जीव उन-उन को प्राप्त कर दूसरे समय कोई भी जीव उन-उन को प्राप्त न करें तो उनकी अपेक्षा जघन्य काल घटित होता है और उत्कृष्ट से संख्यात समय पर्यन्त प्राप्त करते हैं। उसके बाद अन्तर पड़ता है। क्योंकि इन सब को प्राप्त करने वाले गर्भज मनुष्य ही हैं और वे संख्यात ही है । यद्यपि अप्रतिष्ठान नरकावास में तिर्यंच भी जाते हैं परन्तु वह नरकावास मात्र लाख योजन का ही होने से उसमें संख्यात ही नारकी होते हैं, इसलिये तिर्यंच, मनुष्यों में से जाने वाले भी संख्यात ही होते हैं एवं वहाँ जाने का निरन्तरकाल उत्कृष्ट से संख्यात समय का ही है तथा गर्भज मनुष्य में यद्यपि चाहे जिस किसी भी गति में से आया जा सकता है, परन्तु गर्भज मनुष्यों की संख्या संख्यात प्रमाण होने से आने वाले जीव भी संख्यात ही समझना चाहिये। ____ अब पहले जो यह कहा गया है कि निरन्तर आठ समय पर्यन्त सिद्धत्व प्राप्त करने वाले प्राप्त होते हैं तो उनमें आठ समय पर्यन्त कितने मोक्ष में जाते हैं, उसी प्रकार सात, छह आदि समय पर्यन्त कितने मोक्ष में जाते हैं ? जिज्ञासु के एतद्विषयक प्रश्न का समाधान और विशेष निर्णय करने के लिये बतलाते हैं- ..
बत्तीसा अडयाला सही बावत्तरी य चुलसीई । छन्नउइ दुअट्ठसयं एगाए जहुत्तरे समए ॥५६॥
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