Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २
......गाथार्थ-उपशमश्रेणि वाले उपशमक और उपशांतमोही से क्रमशः क्षपक, सयोगि, अप्रमत्त और प्रमत्त ये चार उत्तरोत्तर संख्यात-संख्यातगुणे हैं और उनसे देशविरत, सासादन, मिश्र और अविरत ये चार उत्तरोत्तर असंख्यातगुणं हैं।
विशेषार्थ-गाथा में गणस्थानापेक्षा जीवों का अल्पबहत्व बतलाया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
गाथोक्त उवसंत पद से चारित्रमोहनीय की उपशमना करने वाले आठवें, नौवें और दसवें गुणस्थान तथा चारित्रमोहनीय की सर्वथा उपशमना करने वाला ग्यारहवां गुणस्थान, इस तरह दोनों प्रकार के गुणस्थानों का ग्रहण करना चाहिये । इसी तरह गाथोक्त खवग पद से भी चरित्रमोह की क्षपणा करने वाले आठवें से दसवें गुणस्थान तक और बारहवें क्षीणमोहगुणस्थान, इस तरह चार गुणस्थानों का ग्रहण करना चाहिये। अतएव उपशांत से वाद के चार गुणस्थानवी जीव उत्तरोत्तर संख्यातगुण हैं और उनसे परे के चार गुणस्थानवी जीव उत्तरोत्तर असंख्यातगुण हैं । जो इस प्रकार जानना चाहिये
उपशमक आठवें से दसवें गुणस्थान तक के जीव और उपशांतमोही जीव सबसे अल्प हैं। क्योंकि श्रेणि के सम्पूर्ण काल की दृष्टि से विचार करने पर भी अधिक से अधिक वे एक, दो, तीन आदि नियत संख्या प्रमाण हैं । उनसे क्षपक और क्षीणमोही जीव संख्यातगुणे हैं। क्योंकि उनकी श्रोणि के सम्पूर्ण काल की दृष्टि से भी उत्कृष्ट संख्या शतपृथक्त्व प्रमाण है । उपशम और क्षपक श्रेणि के विषय में कहा गया उपर्युक्त अल्पबहुत्व जब दोनों श्रेणियों में अधिक से अधिक जीव होते हैं तब घटित होता है। इसका कारण यह है कि किसी समय इन दोनों श्रेणियों में कोई जीव होता भी नहीं है । किसी समय दोनों में होते हैं और समान होते हैं, किसी समय उपशमक कम और क्षपक जीव अधिक होते हैं , किसी समय क्षपक कम और उपशमक अधिक होते हैं, इस प्रकार अनियतता से होते हैं। . . क्षपक जीवों से सयोगिकेवली संख्यातगुणे हैं। क्योंकि कम से कम वे कोटिपृथक्त्व होते हैं।
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