Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २ जितना धन होता है, उतनी गुणी) बायर-बादर, तेउकाया-तेजस्काय, तासिमसंखेज्ज-उनसे भी असंख्यात गुणे, पज्जता-पर्याप्त।
गाथार्थ-गर्भज मनुष्य स्तोक-अल्प हैं, उनसे स्त्रियां तीन का जितना धन होता है, उतनी गुणी हैं और उनसे बादर पर्याप्त तेजस्काय जीव असंख्यात गुणे हैं। विशेषार्थ--कतिपय प्रकार के सांसारिक जीवों की यथाक्रम से अल्पाधिकता बतलाते हुए कहा है___'थोवा गब्भय मणुया' अर्थात् गर्भज मनुष्य अल्प हैं क्योंकि उनकी संख्या मात्र संख्यात कोडाकोडी है। इसका आशय यह जानना चाहिए कि आगे स्त्रियों के सम्बन्ध में पृथक् से निर्देश किया है अतः पुरुष रूप गर्भज मनुष्य अल्प हैं । पुरुष रूप गर्भज मनुष्यों से उनकी स्त्रियां तीन का जितना घन होता है, उतनी गुणी हैं, यानि सत्ताईस गुणी हैं
और साथ में सत्ताईस अधिक है। तथा मनुष्य रूप स्त्रियों से पर्याप्त बादर तेजस्काय के जीव असंख्यात गुणे हैं। क्योंकि वे कुछ वर्ग न्यून आवलिका के घन के जितने समय होते हैं, उतने हैं। इसका स्पष्टीकरण पहले द्रव्यप्रमाण प्ररूपणा में किया जा चुका है। अब देव और नारकों के अल्पबहुत्व का प्रमाण बतलाते हैंतत्तोणुत्तरदेवा तत्तो संखेज्ज जाणओ कप्पो । तत्तो असंखगुणिया सत्तम छट्ठी सहस्सारो ॥६६॥ सुक्कंमि पंचमाए. लंतय चोत्थीए बंभ तच्चाए । माहिदसणंकुमारे दोच्चाए मुच्छिमा मणुया ॥६७॥
१ तिगुणा तिरूवअहिया तिरियाणं इत्थिया मुणेयव्वा ।
सत्तावीसगुणा पुण मणुयाणं तदहिया चेव ॥
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