Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २
से पर्याप्त सूक्ष्म जीव सदैव अधिक होते हैं। उनसे पर्याप्त सूक्ष्म पृथ्वीकायिक जीव विशेषाधिक हैं, उनसे पर्याप्त सूक्ष्म जलकायिक जीव विशेषाधिक हैं। उनसे पर्याप्त सूक्ष्म वायुकाय के जीव विशेषाधिक हैं। उनसे अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव असंख्यातगुणे हैं।
संखेज्जगुणा तत्तो पज्जत्ताणतया तओऽभव्वा । पडवडियसम्मसिद्धा वण बायरजीव पज्जत्ता ॥५॥
शब्दार्थ-संखेज्जगुणा-संख्यातगुणे, तत्तो-उनसे, पज्जत्ता-पर्याप्त, णतया-अनन्त, तओऽभव्वा-उनसे अभव्य, पडिवडिय-प्रतिपतित, सम्मसम्बग्दृष्टि, सिद्वा-सिद्ध, वण-वनस्पति, बायर-चादर, जीव-जीव, पज्जत्ता-पर्याप्त ।
गाथार्थ-उनसे पर्याप्त अनन्तकाय ( निगोदिया ) जीव संख्यातगुणे हैं। उनसे अभव्य अनन्तगुणे हैं । उनसे प्रतिपतित सम्यग्दृष्टि अनन्तगुणे, उनसे सिद्ध अनन्तगुणे और उनमे पर्याप्त बादर वनस्पतिकाय जीव अनंतगुणे हैं।।
विशेषार्थ-अपर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीवों से पर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव संख्यातगुणे हैं। यद्यपि सामान्यतया अपर्याप्त तेजस्काय से लेकर पर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीव पर्यन्त असंख्यात लोकाकाशप्रदेश प्रमाण कहे जाते हैं, तथापि असंख्यात के असंख्यात भेद होने से उपर्युक्त अल्पबहुत्व किसी भी तरह से विरुद्ध नहीं है।
पर्याप्त सूक्ष्म निगोदिया जीवों से अभव्य जीव अनन्तगुणे हैं। क्योंकि वे जघन्य युक्तानन्तप्रमाण हैं। ___ अभव्य जीवों से सम्यक्त्व से गिरकर मिथ्यात्व गुणस्थान को प्राप्त अनन्तगुण हैं और उनसे भी सिद्ध जीव अनन्तगुणे हैं और सिद्ध जीवों से पर्याप्त बादर वनस्पतिकाय के जीव अनन्तगुणे हैं। १ उक्कोसपए परित्ताणतए रूवे पक्खित्ते जहन्नयं जुत्ताणतयं होइ, अभव्वसिद्धियावि ततिया चेव ।
-अनुयोगद्वार सूत्र
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