Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २ उनसे थलचर, जलचर, व्यंतर और ज्योतिष्क देव इसी प्रकार उत्तरोत्तर संख्यातगुणे हैं। विशेषार्थ-पूर्व में बताई गई भवनवासी देवियों की संख्या से रत्नप्रभापृथ्वी के नारक असंख्यातगुणे हैं। इसका कारण यह है कि अंगुल प्रमाण क्षेत्र की प्रदेश राशि के साथ उसके पहले वर्गमूल का गुणा करने पर जो प्रदेशसंख्या प्राप्त होती है, उतनी सूचिश्रोणि के आकाशप्रदेश प्रमाण वे हैं ।
रत्नप्रभापृथ्वी के नारकों से भी खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच पुरुष असंख्यातगुणे हैं। क्योंकि वे सूचिश्रेणि के आकाशप्रदेश प्रमाण हैं प्रथम नरकपृथ्वी के नारकों के प्रमाण में हेतुभूत सूचिश्रेणि से खेचर पंचेन्द्रिय पुरुषों की प्रमाणभूत सूचिश्रेणि असंख्यातगुणी होने से वे असंख्यातगुणे हैं।
खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच पुरुषों से उनकी स्त्रियां संख्यातगुणी हैं । क्योंकि वे तिगुनी और तीन अधिक होती हैं। इसी प्रकार तिर्यंचों में सर्वत्र अपनी-अपनी जाति में पुरुषों की अपेक्षा स्त्रियां संख्यातगुणी अर्थात् तिगुनी और तीन अधिक जानना चाहिए। __ खेचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच स्त्रियों से थलचर पुरुष संख्यातगुणे हैं। क्योंकि प्रतर के बड़े असंख्यातवें भाग में वर्तमान असंख्यात सूचिश्रेणि की प्रदेश राशि प्रमाण हैं। उनसे भी उनको स्त्रियां तिगुनी और तीन अधिक हैं। __थलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच स्त्रियों से भी मत्स्य, मगर आदि जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच पुरुष संख्यातगुणे हैं। क्योंकि वे प्रतर के बहुत बड़े असंख्यातवें भाग में विद्यमान असंख्यात सूचिश्रोणि के आकाशप्रदेश प्रमाण हैं । उनसे उनकी स्त्रियां तिगुनी और तीन अधिक हैं। ___उन जलचर पंचेन्द्रिय तिर्यंच स्त्रियों से व्यंतर पुरुष संख्यातगुणे हैं । क्योंकि वे संख्यात कोडाकोडी योजन प्रमाण सूचिश्रोणि सरीखे एक प्रतर के जितने खंड होते हैं, सामान्यतः पुरुष और स्त्री दोनों मिलकर
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