Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५६
शब्दार्थ-बत्तीसा-बत्तीस, अडयाला-अड़तालीस, सट्ठी-साठ, बावत्तरी -बहत्तर, य-और, चुलसीई-चौरासी, छन्नउइ-छियानवे, दुअट्ठसयं-एक सौ दो और एक सौ आठ, एगाए-एक आदि, जहुत्तरे-अनुक्रम से, समए–समयों में ।
__ गाथार्थ-बत्तोस, अड़तालीस, साठ, बहत्तर, चौरासी, छियानवै, एक सौ दो और एक सौ आठ जीव अनुक्रम से एकादि समयों में मोक्ष जाते हैं।
विशेषार्थ-गाथा में एक से लेकर आठ समय पर्यन्त जघन्य और उत्कृष्ट से जीवों के मोक्ष में जाने की संख्या का प्रमाण बतलाया है। जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
एक से बत्तीस संख्या प्रमाण जीव निरन्तर आठ समय पर्यन्त मोक्ष में जाते हैं । अर्थात् पहले समय में जघन्य से एक दो और उत्कृष्ट से बत्तीस मोक्ष में जाते हैं। दूसरे समय में जघन्य से एक दो और उत्कृष्ट से बत्तीस मोक्ष में जाते हैं। इसी प्रकार तीसरे, चौथे यावत् आठवें समय में भी जघन्य से एक दो और उत्कृष्ट से बत्तीस जीव मोक्ष में जाते हैं। तत्पश्चा। अवश्य ही अन्तर पड़ता है। नौवें समय में कोई भी मोक्ष में नहीं जाता है ।।
इसी प्रकार तेतीस से अड़तालीस तक की कोई भी संख्या में जीव निरन्तर उत्कृष्ट से सात समय तक मोक्ष में जाते हैं। तत्पश्चात् अवश्य अंतर पड़ता है।
उनचास से साठ तक की कोई भी संख्या में जीव निरन्तर उत्कृष्ट से छह समय पर्यन्त मोक्ष में जाते हैं, उसके बाद अंतर पड़ता है।
इकसठ से बहत्तर की कोई भी संख्या में जीव निरन्तर उत्कृष्ट से पांच समय पर्यन्त मोक्ष में जाते हैं, उसके बाद अवश्य अन्तर पड़ता है। __ तिहत्तर से चौरासी तक की संख्या में जीव निरन्तर उत्कृष्ट से चार समय पर्यन्त मोक्ष में जाते हैं, उसके बाद अवश्य अन्तर पड़ता है। For Private & Personal Use Only
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