Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur

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Page 189
________________ १५२ पंचसंग्रह : २ ही सम्पूर्ण जीवलोक में उक्त गुणस्थानों में कोई भी जीव नहीं होता है। . सासादन और मिश्रदृष्टि इन दोनों गुणस्थानों का उत्कृष्ट अंतर पल्योपम का असंख्यातवां भाग प्रमाण है । किसी भी काल में सम्पूर्ण लोक में भी पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाणकाल पर्यन्त सासादन और मिश्र इन गुणस्थानों में कोई जीव नहीं होता है, तत्पश्चात् अवश्य उन गुणस्थानों में कोई न कोई जीव आता है। मिथ्यादृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, देशविरत, प्रमत्तविरत, अप्रमत्तविरत और सयोगिकेवली इन छह गुणस्थानों में सदैव जीव होते हैं, जिससे उनके अंतरकाल का विचार नहीं किया जाता है। ____ इस प्रकार से अनेक जीवों की अपेक्षा गुणस्थानों का अंतरकाल बतलाने के बाद अब यह स्पष्ट करते हैं कि अविरतसम्यग्दृष्टि आदि गुणस्थानों को जीव उत्कृष्ट से कितने अंतर से प्राप्त करता हैसम्माई तिन्नि गुणा कमसो सगचोद्दपन्न रदिणाणि । छम्मास अजोगित्तं न कोवि पडिवज्जए सययं ॥६३॥ शब्दार्थ-सम्माई-सम्यक्त्व आदि, तिन्नि-तीन, गुणा---गुणस्थान, कमसो-अनुक्रम से, सग-सात, चोद्द --चौदह, पन्नर-पन्द्रह, दिणाणिदिन, छम्मास-छह माह, अजोगित्त -अयोगीपने को, न-नहीं, कोवि-कोई भी, पडिवज्जए-प्राप्त करता है, सययं-सतत, निरन्तर। गाथार्थ--(अविरत) सम्यक्त्व आदि तीन गुणस्थानों को ... अनुक्रम से सात, चौदह, पन्द्रह दिन और अयोगिपने को छह मास पर्यन्त कोई जीव प्राप्त नहीं करता है। . विशेषार्थ-यद्यपि ऊपर यह बताया है कि अविरतसम्यग्दृष्टि आदि तीन गुणस्थानों में जीव निरन्तर होते हैं, इसीलिये उनका अंतर "नहीं कहा है, परन्तु अब यह बतलाते हैं कि अन्य अन्य जीव उस गुण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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