Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह : २
एकेन्द्रिय जीव पांच प्रकार के हैं- पृथ्वीकाय, अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय । इन पृथ्वीकाय आदि एक-एक भेद में जीव सर्वदा उत्पन्न होते हुए प्राप्त होते हैं, तब सामान्यतः एकेन्द्रिय जीवों में निरन्तर उत्पत्ति होते रहना स्वतः सिद्ध है ।
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प्रश्न - पृथ्वीकाय आदि प्रत्येक हमेशा उत्पन्न होते हैं, यह कैसे जाना जाये ?
उत्तर—सूत्र-आगम वचन से जानना चाहिए | तत्सम्बन्धी सूत्र इस प्रकार है
'पुढविकाइयाणं भंते ! केवइयं कालं अविरहिया उववाएणं पन्नत्ता ? गोयमा ! अणुममयं अविरहिया उववाएणं पन्नत्ता । एवं आउकाइयावि तेउकाइयावि वाउकाइयावि वणस्स इकाइयावि अणुसमयं अविरहिया उववाएणं पन्नत्ता ।'
अर्थात् - हे भदन्त ! पृथ्वीकाय जीव अविरह - निरन्तर कितने काल तक उत्पन्न होते हैं ? हे गौतम ! विरहबिना निरन्तर प्रत्येक समय उत्पन्न होते हैं । इसी प्रकार अप्काय, तेजस्काय, वायुकाय और वनस्पतिकाय भी प्रत्येक समय में लगातार निरन्तर उत्पन्न होते हैं ?
प्रश्न - यदि ये पृथ्वीकाय आदि जीव प्रत्येक समय उत्पन्न होते तो प्रतिसमय कितने उत्पन्न होते हैं ?
उत्तर - पृथ्वी, अप्, तेज और वायु के जीव प्रत्येक समय असंख्यात लोकाकाश प्रदेश राशि प्रमाण उत्पन्न होते हैं । कहा है
चयणुववाओ एगिदिएस अविरहिय मेव अणुसमयं । हरियाणंता लोगा सेसा काया असंखेज्जा ॥
अर्थात् एकेन्द्रियों में विरहबिना ही प्रतिसमय मरण और जन्म होता है । वनस्पतिकाय अनन्त लोकाकाश प्रदेश प्रमाण और शेष चार काय असंख्यात लोकप्रमाण जन्मते हैं और मरते हैं।
'तसत्तणं' अर्थात् त्रसत्व रूप से निरन्तर उत्पन्न हों तो जघन्य एक समय और उत्कृष्ट आवलिका के असंख्यातवें भाग के समय प्रमाण
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