Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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पंचसंग्रह
ज्योतिष्क देवों के पांच भेद हैं- चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र और तारा । इनमें से चन्द्र विमानवासी देवों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्योपम है तथा देवियों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु पचास हजार वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम प्रमाण है ।
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सूर्य विमानवासी देवों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु एक हजार वर्ष अधिक एक पल्योपम तथा देवियों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु पांच सौ वर्ष अधिक अर्ध पल्योपम प्रमाण है ।
ग्रह विमानवासी देवों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु एक पल्योपम तथा देवियों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु अर्ध पल्योपम प्रमाण है ।
नक्षत्र विमानवासी देवों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु अर्ध पत्योपम है तथा देवियों की जघन्य आयु पल्योपम का चतुर्थ भाग और उत्कृष्ट आयु कुछ अधिक पल्योपम का चौथा भाग है ।
तारा विमानवासी देवों की जघन्य आयु पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट आयु पल्योपम का चौथा भाग एवं देवियों की जघन्य आयु पल्योपम का आठवाँ भाग और उत्कृष्ट साधिक पल्योपम का आठवाँ भाग है ।
वैमानिक देव दो प्रकार के हैं -- (१) कल्पोपन्न और ( २ ) कल्पातीत | उनमें से बारह देवलोक में उत्पन्न हुए स्वामि-सेवक की मर्यादा वाले देव कल्पोपन्न और स्वामी सेवक की मर्यादा रहित ग्रैवेयक और अनुत्तर विमान के देव कल्पातीत कहलाते हैं ।
कल्पोपन्न देवों में से सौधर्म देवलोक के देवों की जघन्य आयु एक पल्योपम और उत्कृष्ट आयु दो सागरोपम की है । परिगृहीत- किसी एक देव द्वारा ग्रहण की हुई देवी की जघन्य आय पल्योपम और
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