Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ५२-५३
१२७ क्षपक, क्षीणमोही और अयोगिकेवली अनित्य हैं, फिर भी जब होते हैं तब अन्तमुहर्त काल और अनेक जीवों की अपेक्षा सात समय अधिक अन्तर्मुहूर्त काल होते हैं। विशेषार्थ-इन दो गाथाओं में अनेक जीवों की अपेक्षा गुणस्थानों के निरन्तरकाल का निर्देश किया है । जिसका स्पष्टीकरण इस प्रकार है
सासादनसम्यग्दृष्टि और मिश्रदृष्टि ये दोनों गुणस्थान निरन्तर उत्कृष्ट से क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग प्रमाण काल पर्यन्त होते हैं और जघन्य से जैसा पूर्व में एक जीव की अपेक्षा सासादन का एक समय और मिश्र गुणस्थान का अन्तमुहूर्त जघन्य काल बताया है, उतना ही काल अनेक जीवों की अपेक्षा भी जानना चाहिये।
इसका तात्पर्य यह हुआ कि अनेक जीव यदि सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान को प्राप्त करें तो उसका जघन्यकाल एक समय है। क्योंकि उपशम सम्यक्त्व का जघन्य काल एक समय शेष रहने पर कोई जीव अनन्तानुबंधिकषाय के उदय से वहाँ से गिरकर एक समय प्रमाण सासादन गुणस्थान में रहकर मिथ्यात्व गुणस्थान में जाये और दूसरे समय कोई भी जीव सासादन गुणस्थान में न आये तो उसकी अपेक्षा जघन्य एक समय काल घटित होता है और यदि निरन्तर अन्य-अन्य जीव सासादन गुणस्थान को प्राप्त करें तो उत्कृष्ट से क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग में जो आकाश प्रदेश हैं, उनका प्रतिसमय अपहार करते-करते जितना काल हो, उतना काल यानी असंख्यात उत्सर्पिणी अवसर्पिणी काल घटित होता है। तत्पश्चात् अवश्य अन्तर पड़ता है।
इसी प्रकार सम्यग्मिथ्या दृष्टि गुणस्थान का अनेक जीवों को अपेक्षा निरन्तरकाल जघन्य से अन्तर्मुहूर्त है। अर्थात् यदि अनेक जीव निरन्तर तीसरे गुणस्थान को प्राप्त करें तो उसका जघन्य काल अन्तमुहर्त है। क्योंकि तीसरे गुणस्थान का जघन्य से उतना ही काल है और उत्कृष्ट से क्षेत्र पल्योपम के असंख्यातवें भाग में रहे हुए प्रदेशों
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