Book Title: Panchsangraha Part 02
Author(s): Chandrashi Mahattar, Devkumar Jain Shastri
Publisher: Raghunath Jain Shodh Sansthan Jodhpur
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बंधक-प्ररूपणा अधिकार : गाथा ४५
१११ अपूर्वकरणादि गुणस्थानों का काल
समयाओ अंतमुहू अपुव्वकरणा उ जाव उवसंतो। खीणाजोगीणंतो देसस्सव जोगिणो कालो ॥४५।।
शब्दार्थ-समयाओ-एक समय से प्रारम्भ कर, अंतमुहू-अन्तर्मुहूर्त, अपुवकरणा-अपूर्वकरण गुणस्थान से, उ-और, जाव-पर्यन्त, तक, उवसंतो-उपशांतमोह गुणस्थान, रोणाजोगीणंतो--क्षीणमोह और अयोगिकेवली गुणस्न का अन्त मुहर्न, देसस्सव-देशविरत गुणस्थान के तुल्य, जोगिणो-सयोगिकेवली का, कालो-काल ।
गाथार्थ-अपूर्वकरण से आरम्भ कर उपशांतमोह गुणस्थान पर्यन्त के गुणस्थान एक समय से लेकर अन्तम हुर्त पर्यन्त होते हैं । क्षीणमोह और अयोगिकेवली गुणस्थान अन्तम हुर्त पर्यन्त होते हैं तथा देशविरत गुणस्थान के तुल्य सयोगिकेवली गुणस्थान का काल है।
विशेषार्थ-गाथा में तीन विभाग करके आठवें से लेकर चौदहवें तक सात गुणस्थानों का काल बतलाया है। पहला विभाग आठवें अपूर्वकरण से लेकर ग्यारहवें उपशांतमोह गुणस्थानपर्यन्त चार गुणस्थानों का है । दूसरे विभाग में बारहवें क्षीणमोह और चौदहवें अयोगिकेवली इन दो गुणस्थानों का समावेश है और तीसरे में सिर्फ सयोगिकेवली गुणस्थान है । इन तीनों में से पहले विभाग के गुणस्थानों का काल बतलाते हैं___ 'अपुवकरणा उ जाव उवसंता' अर्थात् अपूर्वकरण, अनिवृत्तिबादरसंपराय, सूक्ष्मसंपराय और उपशांतमोह, इन चार गुणस्थानों का काल एक समय से लेकर अन्तमुहूर्त पर्यन्त है। अर्थात् ये गुणस्थान एक समय से लेकर अन्तमुहूर्त पर्यन्त होते हैं, इसलिये इनमें से प्रत्येक गुणस्थान का जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। ___ इन गुणस्थानों का जघन्य से एक समय प्रमाण काल मानने का कारण यह है कि कोई एक जीव उपशमश्रेणि में एक समय मात्र . अपूर्वकरणत्व का अनुभव करके, दूसरा कोई अनिवृत्तिकरण में आकर
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